श्री राधा जी के नाम के बिना कान्हा का नाम अधूरा है | श्री कृष्ण के नाम को सम्पूर्ण करती इस सृष्टि में प्रेम का संचार करने के लिए बरसाने में प्रकटी श्री राधे का जन्म दिन आज यानि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जा रहा है|
सोलह कला सम्पूर्ण श्री कृष्ण भी जिन राधिका जी के रूठने पर व्याकुल हो उन्हें मनाने का हर यत्न करते हैं | कभी हाथ जोड़ तो कभी मृदु वचन कहकर राधा जी को मनाने में असफल होकर तीन लोकों का ताप हरने वाले श्री कृष्ण अपनी बात कहने के लिए कभी कदम्ब के पुष्प तो कभी गौसुत को अपना हरकारा बना राधा जी के पास भेजते हैं| राधा जी के नाम मात्र से ही मुदित हो जाने वाले मुरारी अपनी प्राण-वल्लभा श्री राधे के बिन स्वयं को अपूर्ण मानते हैं -
मानत ना वृषभानुसुता कर जोरि मना उन माधव हारे|
पाँव गहे, मृदु बैन कहें किसना अपनाय अनेक सहारे|
पुष्प कदम्ब चिरौरि करै अरु गोसुत कातर नैन निहारे|
ताप तिलोक हरें हरि जो निज खातिर ढूँढ रहे हरकारे||
अंततः जब राधा जी को मनाने का अन्य कोई उपाय न दिखा तो सारे विश्व को अपने एक इशारे से संचालित करने वाले श्री कृष्ण स्वयं राधा जी का रूप धारण कर उन्हें रिझाते हैं-
धरा आज कान्ह जी ने, राधा जी का रूप।
राधा कान्हा हैं बनी, लीला अजब अनूप।।
लीला अजब अनूप, घाघरा कंचुकि धारी।
बंसी धर अधरान, बनी राधा बनवारी।।
लीलाधर ने अद्भुत, कैसा ये स्वांग भरा।
हरषाए सब देव, मुस्काय हो मुदित धरा।।
वस्तुतः राधा-कृष्ण दो अलग स्वरूप नहीं वरन एक ही हैं
वहीं वृषभानुसुता मोहन-प्यारी श्री राधे का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य के समस्त काज साध जाते हैं| मोहन से एकरूप होने के लिए श्री राधा कृष्ण का रूप धर कृष्णमय हो जाती हैं| गौर वर्ण पर पीताम्बर धर, हाथ मुरली और माथे मोर पंख धर मोहन की मोहक छवि में राधा की सुन्दर छवि के सम्मुख पूनम का चाँद भी आधा नज़र आता है -
रूप गहा जब माधव का पट पीत धरा तन नागरि राधा|
वेणु गही कर, श्याम छवी धर मोहक पाश बिछाकर बाँधा|
श्याम सलौनि छवी निरखी जब पूनम चाँद लगे अब आधा|
मोहन प्यारि, कृपा जिन पाकर, कौन सा काज नहीं कब साधा||
राधा का जन्म कृष्ण के साथ सृष्टि में प्रेम भाव मजबूत करने के लिए हुआ था. कुछ लोग मानते हैं कि राधा एक भाव है, जो कृष्ण के मार्ग पर चलने से प्राप्त होता है. वैष्णव तंत्र में राधा और कृष्ण का मिलन ही व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य माना जाता है|
राधा- कृष्ण का प्रेम तो त्याग-तपस्या की पराकाष्ठा है। अगर 'प्रेम' शब्द का कोई समानार्थी है तो वो राधा-कृष्ण है। प्रेम शब्द की व्याख्या राधा-कृष्ण से शुरू होकर उसी पर समाप्त हो जाती है। राधा-कृष्ण की प्रीति से समाज में प्रेम की नई व्याख्या, एक नवीन कोमलता का आविर्भाव हुआ। समाज ने वो भाव पाया, जो गृहस्थी के भार से कभी भी बासा नहीं होता। राधा-कृष्ण के प्रेम में कभी भी शरीर बीच में नहीं था। जब प्रेम देह से परे होता है तो उत्कृष्ट बन जाता है और प्रेम में देह शामिल होती है तो निकृष्ट बन जाता है।
'राधामकृष्णस्वरूपम वै, कृष्णम राधास्वरुपिनम;
राधाष्टमी पर जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से राधा की आराधना करता है, उसे जीवन में सभी सुख-साधनों की प्राप्ति होती है
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