विश्व अल्जाइमर
दिवस (२१ सितम्बर) पर
बुजुर्ग
अक्सर भूल जाते हैं
छोटी-बड़ी बातों को|
बहुत ज़ोर देकर भी नहीं
कर पाते हैं याद
कुछ बेहद नज़दीकी नामों
को|
दवाई खाई या नहीं,
या यूँही रखकर भूल गए
कहीं!
अभी कल ही की गुज़री बात
कहाँ आ पाती है याद!
पर ज़माने पहले गुज़रे किस्से
हज़ार,
याद रह जाते हैं उन्हें
सिलसिलेबार!
क्यों फिर-फिर भटक जाते
हैं,
बचपन के उन गलियारों में?
ज़माने पहले गुज़र चुके
कुछ जिगरी यारों में!
धुँधली पड़ती जाती नज़र से
दिखाई देते हैं साफ़-साफ़ ...
वो गाँव-खेत-कुएँ, वो
पुराना टूटा हुआ मकान|
बाँटना चाहते हैं
तुम्हारे साथ वे
अपनी उस अनमोल थाती को |
अपनी लरजती जुबान से सुनाना
चाहते हैं
हज़ारों क़िस्से|
तुम्हारे माथे की
त्योरियाँ,
झिड़क कर दूर झटक देती हैं
उनकी इस बचकानी सी
ख्वाहिश को|
और उनकी काँपती बूढ़ी
उंगलियाँ
खुद ही लाड़ से सहला गले
से लगा लेती हैं
अपने गुज़रे कल को!
वे खुद में फिर-फिर जीते
हैं
बीते एक-एक पल को !
खुद से बात करते कभी
झुर्रियों के बीच खिल उठती
है मुस्कान ...
कभी बेसबब ही बहे अश्क़,
उन आड़ी-तिरछी नालियों में
जम
छोड़ देते हैं अपने निशान !
पर तुम नहीं समझ पाते
कि क्यों बुजुर्ग
भूल अपना आज, बीते कल में
गुम जाते?
क्या आज को याद रखने की
कोई वज़ह तुमने उनको दी?
क्यों उन्हें बचपन में
लौट,
ढूँढ़नी पड़ती अपनी मुस्कान
?
क्यों कुछ पल उनके साथ
बिता,
कर देते नहीं हँसना आसान?
बस थोडा-सा प्यार, थोड़ी-सी
अपनाहत ,
दे देगी आज में जीने का
हौंसला,
भर देगी मन में जीने की
चाहत !
हाँ! याद दिलाने को मेरे
अपने हैं मेरे पास
जब यह हौंसला मिल जाएगा,
तब कुछ भूल जाते का डर
बुजुर्गों को न सताएगा ......
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