अनुभव होता है आजकल
देह का प्राण से विलग होना
बड़ी ही जटिल है .. यह प्रक्रिया
आखिर रोम-रोम हम बंधे हैं साथ
हर बंध टूटने का अहसास
तड़पा देता है
कर देता विह्वल
हर साँस देह में अटक कर
कुछ और रुक जाना चाहे है
थाम लेना चाहती है देह
प्राणों के संसर्ग को
कुछ और पल .... कुछ और क्षण
जैसे तुम्हारे कदमों से बंधे हैं
मेरी साँसों के धागे
दूर जाता तुम्हारा हर कदम
क्षीण कर जाता जीवन की आस
आखिर .. मैं देह , तुम प्राण !
प्रेम में विरह का दुःख ऐसे ही विह्वल कर जाता है...भावपूर्ण !
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी !
Deleteधन्यवाद अनीता जी !
Deleteवाह !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
अनुलता
शुक्रिया अनु :)
Deleteदेह से प्राण विलग नहीं होते ... कुछ पल अलग होना पुनः मिलन की आकर्षित करता है ...
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे दिगंबर जी !!
Deleteबहुत सुन्दर.... दिल को प्यार से अब भी सहला जाता है कोई… तुम्हारी सांसो का अहसास शायद ……
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल कुमार जी !!!
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteशुक्रिया सुरेंदर पाल जी
Deleteदेह से अलग प्राण का कहाँ जाएँगे
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
http://savanxxx.blogspot.in
हार्दिक आभार सावन कुमार जी !!
Deleteसुंदर भावाभिव्यक्ति....
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