तुम शब्दों में
ढूंढते रहे भावनाएँ
मैं मौन बाँचती रही
मौन ही गूढ़
मौन ही शाश्वत
मौन ही तो है सबसे मुखर
चुक जाते हैं शब्द अक्सर
बन जाते हैं पंगु
असमर्थ रह जाते
करने में वहन भावनाएँ |
तब चारों ओर पसरा यह मौन ही
हो उठता है मुखर
बोलता, चीखता, गाता, गुनगुनाता है|
अपनी अदृश्य कलम से
हर भाव चेहरे पर लिख जाता है |
बस, कुछ पल तो बैठो पास
पढ़ो, इस मौन को मेरे
जान पाओगे भाव
छिपे.... गूढ़ अंतस में कहीं
क्यों चाहते कि कर दूँ व्यक्त
शब्दों में
बहुत खुबसूरत, संदेशात्मक, प्रेरक रचना...
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