Thursday, 26 February 2015

आत्म साक्षात्कार


आत्म साक्षात्कार
मुश्किल होता है बड़ा
करना अपना सामना
दूसरों का सामना तो फिर भी
बखूबी कर लेता इंसान
कुछ दिखावटी व्यवहार,
कुछ बनावटी मिठास
वो आत्मीय मुस्कराहट
न जाने कितनी सामग्रियों से सज़ा कर
पेश करते खुद को
दुनिया के दस्तरख्वान पर
एक लज़ीज़ पकवान की तरह
लगाता नुमाइश अपनी
गिनवाता अपनी खूबियाँ
अपने आदर्श, सभ्य, नैतिक  रूप के पीछे
छिपा जाता हर बार
अपना वह आदिम मूल स्वभाव
पर खुद से कहाँ छिपा पाता है खुद को
यह वो आइना  है जहाँ
वह और उसकी आदिम इच्छाएँ
होते हैं रू-ब-रू  ... बे-लिबास
जहाँ खुद के आदर्श, मूल्य, नैतिकता
उसे ढोंगी ठहरा करते हैं अट्टहास
खूबसूरत मुखौटे
नोच फैंकती हैं  उंगलियाँ
तब वह खुद ही आइना और खुद ही अक्स बन जाता
खुद अपनी ही आवाजें
कसती हैं तंज
तब खुद को ही बहला- फुसला कर
किसी तरह चुप करा कर
मन की कब्र के नीम अँधेरे में
कर देते हैं दफ्न
क्योंकि मुश्किल बड़ा है
खुद को देखना,सुनना
और करना आत्म-साक्षात्कार







2 comments:

  1. खुद से मिले बिना लेकिन चैन भी तो नहीं मिलता...खुद की गहराई में ही छिपा है अपना वास्तविक स्वरूप..

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    Replies
    1. जी अनीता जी ... बिलकुल सही कहा आपने , बड़ी दुविधा की स्थिति है !

      Delete

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