अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
जमी हुई थी हिमनद सीने में बर्फ़ ही बर्फ़ न कोई सरगोशी .. न हलचल सब कुछ शांत, स्थिर, अविचल फिर आए तुम स्पर्श कर मन को अपने प्रेम की ऊष्मा मेरे ह्रदय में व्याप्त कर गए बूँद बूँद पिघल उठी मैं बह निकली नदी सी मैं बर्फ से गंगा बनी मैं
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प्रेम की ऊष्मा का असर शब्दों में दिख रहा है ...
ReplyDeleteबहुत कोमल भाव ...