हर बार ज़रूरी नहीं होता
वज़ह पूछी जाए
कभी कयास लगाना ही बेहतर होता है
कि
बात करते करते अचानक
कोई चुप हो गया था क्यों
साथ चलते कदम अचानक
ठिठक के रुक गए थे क्यों
क्या सोचा होगा उसने
जो आँख यूँ भर आई होगी
एक नामालूम सी मुस्कराहट के पीछे
याद किसकी छिपाई होगी
क्या हुआ कि रस्ते बदल गए होंगे
कब, कैसे, कहाँ तार रिश्तों के
नए जुड़ गए होंगे
वज़ह पूछोगे तो
बेवज़ह बात बढ़ जाएगी
राख के ढेर में छिपी चिंगारी
कुरेदने से भड़क जायेगी
वज़ह के पीछे छिपा जवाब
तुम्हारे ख्यालों से मेल खाए
क्या पता वो तसव्वुर को
चकनाचूर कर जाए
तो अपने ख़्वाबों,ख्यालों,तसव्वुर को
सहलाते रहिए
वज़ह पूछने से बेहतर है ...कयास लगाते रहिए
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shalini rastogi
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