अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
अजीब विरोधाभास है ~~~~~~~~~~~~~ रिक्तता का अहसास कितना भारी कर देता है मन कभी मन के किसी कोने में किसी की आहट सुनने को कुछ सुगबुगाहट सुनने को भटकते, टकराते फिरते अपने ही मन की दीवारों से पर भरी होती है वहां हर ओर सिर्फ रिक्तता ~~~~~~ है न
'रिक्तता' और 'अदाकारा' भीतरी अशांति, दुःख, पीडा का प्रतिनिधित्व करती है। आसपास का माहौल मनुष्य मन पर गहरी छाप छोडता है। कई आघातों को मीठी मुस्कान के विविध रंग देकर छिपाता है, पर खाली 'रिक्त' समय गहराई में जाकर अपना मूल्यांकन खुद करता है। हो न हो दोनों कविताएं एक-दूसरे के साथ जुडती है।
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
'रिक्तता' और 'अदाकारा' भीतरी अशांति, दुःख, पीडा का प्रतिनिधित्व करती है। आसपास का माहौल मनुष्य मन पर गहरी छाप छोडता है। कई आघातों को मीठी मुस्कान के विविध रंग देकर छिपाता है, पर खाली 'रिक्त' समय गहराई में जाकर अपना मूल्यांकन खुद करता है। हो न हो दोनों कविताएं एक-दूसरे के साथ जुडती है।
ReplyDelete