अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
ग़म तो पहले ही क्या कुछ कम थे शौक ए इश्क़ जो चर्राया
दिल हरेक बार तोड़ा तुमने फिर हरेक बार दिल क्यूँ भर आया
देख के इन्सान की हैवानियत आज शैतान भी शरमाया
आँख ने दिए कभी धोखे तो जुबां ने कभी भरमाया
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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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