अदाकारा
होती है छिपी
हर औरत के मन की तहों में,
गाहे-बेगाहे उभर आती है
कभी भी सामने दुनिया के
जब अंतर्मन की पीड़ा को पी कर
मुस्कुराती है
उसकी खुशहाली पर माँ उसकी
वारी-वारी जाती है
दर्द, अपमान, पीड़ा, अवहेलना की
बारीक लकीरों को
कितनी खूबसूरती से वह
व्यस्तता के अभिनय से छिपाती है.
आँखों में औचक भर आये आंसुओं को
आँख में कुछ गिर जाने के बहाने से ,
रुंधे हुए गले की बैठी हुई आवाज़
खांसी के पीछे छिपाने में
रात तकरार के बाद
गाल पर छपे उँगलियों के निशान
मेकअप के नीचे छिपाती
वो हँसतीहै, खिलखिलाती है
चाहे जितने भी निभाए रिश्ते
पर सब पर हावी रहती है
वो छिपी हुई
अदाकारा
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shalini rastogi
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