Sunday, 21 September 2014

रिश्ते ( श्रंखला -2 )


रिश्ते 

जो पकते नहीं

 
समय के आंवे पर 


नहीं उठती उनकी महक


रह जाते हैं कच्चे

 
हाँ! नहीं सहार पाते वे


निभाव का जल


संग-संग 'सोहणी' के


हो जाते हैं गर्क


अतल गहराइयों में


और रह जाते हैं उन

के
कुछ बुदबुदाते किस्से


हाँ , अधकचरे ही रह जाते है


कुछ रिश्ते !

2 comments:

  1. अधकचरे रिश्ते भी बहुत तकलीफ देते हैं ...

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  2. भावप्रवण रचना। धन्यवाद।

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