अक्सर....
ढूँढते हैं लोग
कविताओं में कहानियाँ
कवि के व्यक्तिगत जीवन से
जोड़ने लगते हैं कड़ियाँ
लगाते हैं कयास
हाँ .. ऐसा हुआ होगा
या वैसा
पर समझते नहीं
कि रचनाओं में उभरने वाले चहरे
तेरे, मेरे , इसके, उसके
या किसी के भी हो सकते हैं
निज हों या पर
अनुभव ही लेते हैं
रचनाओं का रूप
कलम की नोक से
काग़ज़ पर उभरे शब्द
समाज का ही प्रतिबिम्ब
उकेरते हैं
अक्सर ....
ढूँढते हैं लोग
कविताओं में कहानियाँ
कवि के व्यक्तिगत जीवन से
जोड़ने लगते हैं कड़ियाँ
लगाते हैं कयास
हाँ .. ऐसा हुआ होगा
या वैसा
पर समझते नहीं
कि रचनाओं में उभरने वाले चहरे
तेरे, मेरे , इसके, उसके
या किसी के भी हो सकते हैं
निज हों या पर
अनुभव ही लेते हैं
रचनाओं का रूप
कलम की नोक से
काग़ज़ पर उभरे शब्द
समाज का ही प्रतिबिम्ब
उकेरते हैं
अक्सर ....
कलम की नोक से
ReplyDeleteकाग़ज़ पर उभरे शब्द
समाज का ही प्रतिबिम्ब
उकेरते हैं
अक्सर ....
सहमत हूँ आपसे। बहुत ही सुन्दर रचना