रिश्ते
कांच से नाजुक भले हों
पर कांच के नहीं होते
हाँ, नहीं होती आवाज़
उनके टूटने की
चुपचाप दम तोड़ देते हैं
टूट के बिखर जाते हैं
दूर तक फैल जाती हैं
उनकी किरचें
दिल, दिमाग़ और पूरे वज़ूद में
चुभती है, खटकती हैं, खरोंचती हैं
बन नासूर रिसते हैं
इनके दिए ज़ख्म
चाहे न हो विलाप
पर
अंतस में मच जाता हाहाकार
जब दम तोड़ते हैं
रिश्ते|
रिश्तों की नाजुकता का नाजुक वर्णन। दोनों कविताओं में दो प्रतीक अलग। अलग-अलग प्रतीक जोडकर कविता को और लंबा किया जा सकता है। लंबी कविता लिखना आवाहन है पर एक दम न सही समय दर समय आए विचारों को जोडकर लंबी कविता बन सकती है।
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