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न रात के आँचल पे टंका था चाँद
न झील के दमन में खिले थे कंवल
न गुंचे फूल के समां महका रहे थे
न भँवरे प्रेम रागिनी कोई गा रहे थे
फिर अचानक क्या हुआ कि जो
यूँ महकने, खिलखिलाने लगा समां
कैसे दिल में चांदनी की ठंडक उतर गई
क्यूँ कंवल मन की झील में झिलमिलाये
हाँ ... कुछ तो हुआ है खास
मन के गलियारे में कुछ हलचल सी मची है
शायद तेरी यादों की आमद हुई है
नयी पुरानी हलचल का प्रयास है कि इस सुंदर रचना को अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
ReplyDeleteजिससे रचना का संदेश सभी तक पहुंचे... इसी लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 05/06/2014 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
[चर्चाकार का नैतिक करतव्य है कि किसी की रचना लिंक करने से पूर्व वह उस रचना के रचनाकार को इस की सूचना अवश्य दे...]
सादर...
चर्चाकार कुलदीप ठाकुर
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बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति!!!
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