सोचती हूँ
कह दूँ
तुम मेरी जिंदगी के सफहे पर लिखी
कोई तहरीर तो नहीं
वक्त-ए-तन्हाई में
उबकर
या कुछ बेख्याली में
यूँही
हाशियों पर जो खींच दी जाती है
कोई अनगढ़-सी इबारत
या कुछ बेमतलब सी लकीरें
तुमको पढूँ तो कैसे
कोई मतलब निकालूं तो कैसे
कि होश में तो तुम्हे लिखा ही नहीं
और अब
बार बार बाँचती तुम्हें
जतन करती हूँ
कोई मतलब निकलने का
कि तुम हो तो मेरी जिंदगी की किताब में
पर क्या तआर्रुफ़ कराऊं तुम्हारा
सोचती हूँ
बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
धन्यवाद दिनेश जी!
Deleteबहुत ही भावपूर्ण एवं सार्थक कविता,आभार शालिनी जी.
ReplyDeleteशुक्रिया राजेन्द्र जी!
Deleteबहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
कई रिश्ते ..अनगढ़े..अनबूझे ही रह जाते हैं...
ReplyDeleteउनका अस्तित्व तो होता है ...
पर नाम..
शायद हम भी नहीं जानते हैं
धन्यवाद सरस जी!
Deleteशालिनी जी इतनी सुन्दर रचना रची है की पढ़ते पढ़ते कहीं खो गया. शानदार रचना बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद अरुण!
Deleteबहुत खूब ... कुछ न होते हुवे भी जो होते हैं उसका परिचय कराना आसान नहीं ...
ReplyDeleteदिगंबर जी ..बहुत बहुत शुक्रिया!
Deleteह्म्म्म......कुछ अलग सा।
ReplyDeleteधन्यवाद इमरान....
Deleteबहुत अद्भुत अहसास.बहुत खूब,
ReplyDeleteशुक्रिया मदन मोहन जी!
Delete
ReplyDeleteदिनांक 28 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
हलचल में शामिल करने के लिए आभार यशवंत जी!
Deleteसुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteकुछ रिश्ते,कुछ लोग... होते हैं...तो बस होते हैं..! उन्हें किसी तार्रुफ की ज़रूरत नहीं होती शायद... या कहा जाए...उन्हें शब्दों में समाया नहीं जा सकता..
~सादर!!!
हमने देखी है इन आँखों कि महकती खुश्बू
Deleteहाथ से छू के इसे रिश्तों का इलज़ाम न दो
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो ...... धन्यवाद अनीता!
खूबसूरत भाव.
ReplyDeleteधन्यवाद निहार रंजन जी!
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
धनयवाद प्रतिभा जी!
Delete"बार-बार बांचती तुम्हें .....क्या तारुफ़ कराऊं तुम्हारा "...गहरी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया शिखा जी ..
Delete"बार-बार बांचती तुम्हें .....क्या तारुफ़ कराऊं तुम्हारा "...गहरी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअपने ब्लॉग का पता भी छोड़ रही हूँ .......यदि पसंद आये तो join करियेगा ....मुझे आपको अपने ब्लॉग पर पा कर बहुत ख़ुशी होगी .
http://shikhagupta83.blogspot.in/
आपका ब्लॉग पसंद आया ..ज्वाइन भी कर लिया है!
Deletesundar bhavpurn rachna
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब!
Deletejindgi ke kitab pr hastakshr hi kisi ki pahachan ke liye sabse behtareen nishani hai .......behad khoob soorat rachana ke liye aabhar .
ReplyDeleteआपका स्वागत है नवीन जी!
Deleteधन्यवाद!
सुन्दर,ऐसी रचना का तो इंतजार रहता है.आभार.
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ. साहब!
Deleteएहसासों को खुद के एक हिस्से को कई मर्तबा नाम दे पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है .ये भाव जगत भी बड़ी अजीब शह(शै )है .बहुत खूब -सूरत रचना .
ReplyDeleteसही कहा वीरेंद्र जी...धन्यवाद!
Deleteधन्यवाद मानव जी!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर!
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