कभी दरबदर हम, अनजान मंजिल, कभी गुमशुदा थे रास्ते
क्या ढूंढते थे, क्या मिला थे न जाने हम किस तलाश में ..
क्या ढूंढते थे, क्या मिला थे न जाने हम किस तलाश में ..
हर शख्स यहाँ
किसी न किसी
तलाश में
भटकता फिर रहा
अनवरत
अनजान राहों पर
कोई सुकून की तलाश में
फिरता बेचैन
किसी ने शांति को खोजते
खो दिया चैन
कोई बंधन सब तोड़
प्यार तलाशने निकला
कोई बुतों को तोड़
तो कोई पत्थर तराश
खुदा तलाशने निकाला
खुशी की तलाश में कभी
हँसी किसी ने खोई
आशियाँ की तलाश में
दरबदर कोई
बस यूँ ही
अनजान चाहत
कहाँ दिल को राहत
बेवज़ह भटकते
जिंदगी की सूनी गलियों में
बाकी रह जाती है तो बस
तलाश
सदियों से इंसान बेहतरी की तलाश में आगे बढ़ता जा रहा है तलाश का कोई अंत नहीं,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
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ReplyDeletebahut bahut dhanyvaad rajendr ji!
ReplyDeleteजाने किस तलाश में इंसान भटकता है दर -बदर , आजीवन चक्र चलता है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
बहुत बहुत धन्यवाद वाणी जी!
Deleteगहरी सोच ..तलाश कभी ख़तम नहीं होती नजाने किस चीज की तलाश है !!! badhai
ReplyDeleteऔर इसी तलाश में हम खुद लापता हो जाते हैं... बहुत बहुत धन्यवाद पारुल जी!
Deleteबहुत ही सुन्दर सी कविता |ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन हेतु आपका दिल से शुक्रिया |
ReplyDeleteजय कृष्ण जी..आपका बहुत बहुत शुक्रिया!
Deleteतलाश अपनी भी हो तो रास्ते स्याह ही होते हैं, सच छुप जाता है - झूठ दावे से सर उठाये एक कतरा रौशनी में अपना चेहरा दिखाता है
ReplyDeleteवाह.... क्या बात कही है रश्मि जी... बेहद खूबसूरती से इस सच को उकेरा आपने.... ब्लॉग पर आने व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार!
Deleteजिंदगी भी तो एक तलाश है ... सुकून मिएँ जाने की तलाश जो निरंतर रहती है ...
ReplyDeleteसही कहा दिगंबर जी ... धन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर शालिनी जी !
ReplyDeleteऐसे ही दो पंक्तियाँ मन में आ गयीं...
कभी यूँ भी सफ़र की बहार हो ...
हों रस्ते पर..ना मंज़िल की तलाश हो.....
~सादर!!!
वाह अनिता जी...क्या कहने ... इस तरह बेमकसद आवारगी का भी अपना अलग ही लुफ्त है .. धन्यवाद!
Deleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार मदन जी!
Deleteशुभकामनायें, तलाश पूरी हो !
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी!
Deleteबहुत बहुत खुबसूरत लगी ।
ReplyDeleteशुक्रिया इमरान जी!
Deleteइंसान की तलाश कभी ख़त्म नही होती,,,उम्दा अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST... नवगीत,
बस यही तलाश भटकाती रहती है.... रचना पर टिपण्णी के लिए आभार!
Deleteधन्यवाद रविन्द्र जी
ReplyDeleteखुद में खुद को ही तलाशते उम्र बीत जाती है ....
ReplyDeleteफिर भी ये तलाश अधूरी ही रह जाती है ....
बहुत सुंदर लिखा है ....
शुभकामनायें शलिनी जी ...
बहुत बहुत धन्यवाद अनुपमा जी!
DeleteMeri Haziri bhi kabool kar le...........................
ReplyDeleteखुशामदीद ..... आपके कमेन्ट के बिना कुछ कमी सी थी.
Delete♥✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥❀♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿♥
♥बसंत-पंचमी की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं !♥
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कहाँ दिल को राहत
बेवज़ह भटकते
जिंदगी की सूनी गलियों में
बाकी रह जाती है तो बस
तलाश...
बहुत सुंदर शालिनी जी !
मन की तलाश मन पर ही पूरी होती है शायद !
मेरे एक गीत की पंक्तियां आपके लिए -
कितने सागर, कितनी नदियां,
कितना नीर तलाशा !
व्याकुल मन को थाह मिली ना,
... है प्यासा का प्यासा !!
:)
...और वह गीत तो आपको याद ही होगा -
तेरे नैना तलाश करे जिसे
वो है तुझही में कहीं ...
बसंत पंचमी सहित
सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
.........बेहतरीन रचना देने के लिए आभार शालिनी जी
ReplyDeleteक्या खूब कहा आपने या शब्द दिए है
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
आज 19/02/2013 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
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