1.
चाँद किरण की सलाइयों पर
हसरतों के धागे से
उम्मीद का रुपहला स्वेटर
बुनती रही रात
भोर की पहली किरण के साथ
दिन ने आते ही
उस रुपहले ख्वाब को
असलियत का
बदरंग - सा
जामा पहना दिया
2.
धीरे- धीरे ढल रहा था
रात का शबाब
खिन्न मन से
यहाँ-वहाँ बिखरे
अपने तारों को समेटती
बाँध रही
अपनी पोटली में
दिन, क्षितिज पर खड़ा
देखता रहा कुछ देर ,
फिर यूँ कहने लगा
क्यों समेटती हो इन तारों को
ला, मुझे अपनी ये सौगात
उधार देजा
और , रात ने
बिखेर दिए तारे
सारे के सारे
जा सजे
हरी घास पर
और जगमगाने लगी
धरा
3.
सुबह से सांझ तक
करता रहा सफर
कुछ क्लांत, कुछ मलिन
उदास-सा दिन
अपना मुरझाया चेहरा
रात के नरम सीने में छिपा
निढाल सा पड़ा रहा
न जाने कब तक
और रात ने अपने
शबनमी लब
दिन की जलती आँखों पे रख
उसकी सारी
तपन हर ली .....
4.
थी कुछ बदगुमानी में रात
कुछ तल्खी, कुछ तंज
और कुछ अकड़ के साथ
यूँ कहने लगी दिन से
रात भर सपने आँखों में सजाती मैं
चाँद की दुधिया किरण
सितारों से उन्हें
जगमगाती मैं
तू निष्ठुर आता है
तेज रोशनी से अपनी
आँखें चकाचौंध कर
स्वपनिल आँखों से
सपने छीन ले जाता है......
कुछ देर तो चुप रहा फिर
मंद स्मित, कुछ हास के साथ
रात कुछ यूँ बोला दिन
सपने तो आँखों में सजाती है तू
ख़्वाबों के पर लगा कर
दूसरी दुनिया में ले जाती है तू
अरी नादान !
बस इसी बात का तुझे मान ?
सपनों को तेरे
सच्चाई के धरातल पर उतारता मैं
सच कर पाने का इन्हें माद्दा
जिस्म में पालता मैं
गर न रोशनी मेरी
इंसानी नींद खुलवाए
तो स्वप्न सारे
कमल में बंद भंवरे से
कुम्हलाएँ, मर जाएँ
सुन्दर अभिव्यक्ति | बढ़िया रचना | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
hardik aabhaar
Deleteअपना मुरझाया चेहरा
ReplyDeleteरात के नरम सीने में छिपा
निढाल सा पड़ा रहा
न जाने कब तक
बहुत खूब ,ऐसा लगता है जैसे मेरा ही नक्षा खिंचा है।
वाह शालिनी ...हर क्षणिका बेहद खूबसूरत ...अंतर तक उतर गयी...:)
ReplyDeletedhanyvaad saras ji !~
Deleteबहुत खूबसूरत क्षणों से बुनी है ... नाज़ुक सी रचना ...
ReplyDeleteवाह !!! बहुत शानदार बेहद उम्दा प्रस्तुति,,,बधाई
ReplyDeleterecent post: बसंती रंग छा गया
बहुत ही बढ़िया मैम!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर! अंत की सच्चाई ...दिल को छू गयी...
ReplyDelete~सादर!!!
सभी के सभी बहुत उम्दा.....आखिरी वाला मुझे सबसे अच्छा लगा।
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ReplyDeleteभावना और अर्थ की व्यंजना बढ़िया हुई है .चित्र भी भाव कथा कहते हैं रचना भी मनस्थिति को खोलती है रात के बहाने दिन की जुबानी .
सभी शब्दचित्र बहुत बढ़िया हैं!
ReplyDeleteक्या खूब कहा आपने या शब्द दिए है
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुती
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एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ