मशविरा कोई तो दो यारों कि मुश्किल बड़ी है '
इधर कूचा - ए - यार है, उधर मस्जिद खड़ी है
पी के जो ज़रा बहके कि सबक पढ़ाने लगी दुनिया
होश में रहने को यारों, ज़िंदगी बहुत ही बड़ी है
रात की खुमारी ही उतरी न थी अब तक कि
सुबह तल्ख़ सच्चाई फिर रु-ब-रु खड़ी है
दो घूँट ही चढ़ाई थी कि छिपते फिर रहे थे हम
क्या करें जनाब-ए-शेख की, नाक बहुत बड़ी है .
मैखाने के दरवाजे पे, दो पल क्या ज़रा ठहरे,
त्योरियाँ ज़माने भर की , हम पे चढ़ी हुई हैं
मयकश को सहारा दे ज़रा, घर तलक क्या पहुँचाया
बदनामियाँ ज़माने भर की अब, दरवाज़े पे आ खड़ी हैं ..
क्या गजल लिखी है वहा वहा बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
शुक्रिया दिनेश जी!
Deleteवाह ... बहुत खूब कही है गज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी!
Deleteक्या खूब बहकी-बहकी रचना है..... :-)
ReplyDelete~सादर!!!
मयकशी का यही तो इक फायदा है ए यार
Deleteपानी भी पीते हैं तो लोग बहकाने का इल्ज़ाम लगाते हैं ............ शुक्रिया अनिता !
पियाला खाली उठाकर,लगा लिया मुह से,
ReplyDeleteकी कुछ तो निकल जाए हौसला दिल का ,,,
Recent post: गरीबी रेखा की खोज
क्या बात है धीरेन्द्र जी
Deleteकुछ इस कदर लत पड़ गई है इस नामुराद की
कि सदा पानी भी अब शराब का सा नशा देता है...
आखिरी शेर बहुत पसंद आया .....:)
ReplyDeleteशुक्रिया सरस जी!
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति,आखरी गज़ल शेर में वाकई दम है.
ReplyDeleteधन्यवाद राजेन्द्र जी!
Deleteबहुत ही बढ़ियाँ गजल है...
ReplyDeleteथंक्स रीना जी .... जहे नसीब जो आपके चहरे का दीदार हुआ!
Deleteis bahaki-bahaki rachna ke liye ek jaam
ReplyDeletehamaari taraf se.........cheers!
बहकी बहकी सी है फिज़ा गरीब खाने की
Deleteकोई आहट- सी सुनी है किसी के आने की ...धन्यवाद सुशीला जी!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteशुक्रिया अरुण !
Deletewaah...
ReplyDeleteधन्यवाद मानव!
DeleteBahut Khoob....
ReplyDeleteरात की खुमारी ही उतरी न थी अब तक कि
ReplyDeleteसुबह तल्ख़ सच्चाई फिर रु-ब-रु खड़ी है
दिलचस्प। हकीकत की नक्काशी करता है ये शेर। सुबह की तल्ख़ सच्चाई से रोजाना ही रुबरु होना पड़ता है।
मै इन्तजार कर रहा था ,की आपकी पोस्ट ईमेल में मिल जाये ,तो वहां से इस शेर को कापी करके आपको भेजूं।
बहुत बहुत शुक्रिया आमिर भाई!
Deleteबहुत उम्दा पंक्तियाँ ..भाव पूर्ण रचना ... वहा बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
dhanyvaad dinesh ji!
Deletevah kya khoob ,damdar gazal
ReplyDeleteअज़ीज़ जैपुरी साहब ...हौंसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
Deleteशालिनी जी शायरी की तारीफ करू वो मुझपे अल्फाज कंहा?
ReplyDeleteपढू कसीदे उन उम्दा शेरो के पर ,मुझपे वो अंदाज कहा //
ReplyDeleteशालिनी जी की तारीफ करू ,पर मुझपे वो अल्फाज कंहा?
पढू कसीदे इस गजल के ,पर मुझपे वो अंदाज कंहा//