Friday, 22 February 2013

मयकदा



मशविरा कोई तो दो यारों कि मुश्किल बड़ी है '

इधर कूचा - ए - यार है, उधर मस्जिद खड़ी है 


पी के जो ज़रा बहके कि सबक पढ़ाने लगी दुनिया 

होश में रहने को यारों, ज़िंदगी बहुत ही  बड़ी है 


रात की खुमारी ही उतरी न थी अब तक कि

सुबह तल्ख़ सच्चाई फिर रु-ब-रु खड़ी है 


दो घूँट ही चढ़ाई थी कि छिपते फिर रहे थे हम 

क्या करें जनाब-ए-शेख की, नाक बहुत बड़ी है .


मैखाने के दरवाजे पे, दो पल क्या ज़रा ठहरे,

त्योरियाँ ज़माने भर की , हम पे चढ़ी हुई हैं 


मयकश को सहारा दे ज़रा, घर तलक क्या पहुँचाया 

बदनामियाँ ज़माने भर की अब, दरवाज़े पे आ खड़ी हैं ..

29 comments:

  1. क्या गजल लिखी है वहा वहा बहुत खूब
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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    1. शुक्रिया दिनेश जी!

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  2. वाह ... बहुत खूब कही है गज़ल

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    1. धन्यवाद संगीता जी!

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  3. क्या खूब बहकी-बहकी रचना है..... :-)
    ~सादर!!!

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    1. मयकशी का यही तो इक फायदा है ए यार
      पानी भी पीते हैं तो लोग बहकाने का इल्ज़ाम लगाते हैं ............ शुक्रिया अनिता !

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  4. पियाला खाली उठाकर,लगा लिया मुह से,
    की कुछ तो निकल जाए हौसला दिल का ,,,


    Recent post: गरीबी रेखा की खोज

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    1. क्या बात है धीरेन्द्र जी
      कुछ इस कदर लत पड़ गई है इस नामुराद की
      कि सदा पानी भी अब शराब का सा नशा देता है...

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  5. आखिरी शेर बहुत पसंद आया .....:)

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति,आखरी गज़ल शेर में वाकई दम है.

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    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी!

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  7. बहुत ही बढ़ियाँ गजल है...

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    1. थंक्स रीना जी .... जहे नसीब जो आपके चहरे का दीदार हुआ!

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  8. is bahaki-bahaki rachna ke liye ek jaam
    hamaari taraf se.........cheers!

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    1. बहकी बहकी सी है फिज़ा गरीब खाने की
      कोई आहट- सी सुनी है किसी के आने की ...धन्यवाद सुशीला जी!

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  9. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  10. रात की खुमारी ही उतरी न थी अब तक कि

    सुबह तल्ख़ सच्चाई फिर रु-ब-रु खड़ी है

    दिलचस्प। हकीकत की नक्काशी करता है ये शेर। सुबह की तल्ख़ सच्चाई से रोजाना ही रुबरु होना पड़ता है।
    मै इन्तजार कर रहा था ,की आपकी पोस्ट ईमेल में मिल जाये ,तो वहां से इस शेर को कापी करके आपको भेजूं।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आमिर भाई!

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  11. बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..भाव पूर्ण रचना ... वहा बहुत खूब
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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  12. Replies
    1. अज़ीज़ जैपुरी साहब ...हौंसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

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  13. शालिनी जी शायरी की तारीफ करू वो मुझपे अल्फाज कंहा?
    पढू कसीदे उन उम्दा शेरो के पर ,मुझपे वो अंदाज कहा //

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  14. शालिनी जी की तारीफ करू ,पर मुझपे वो अल्फाज कंहा?
    पढू कसीदे इस गजल के ,पर मुझपे वो अंदाज कंहा//

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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