Friday 19 October 2012

बातें कुछ यहाँ - वहाँ की

बहुत से शेर इधर उधर लिख कर छोड़  दिए .... आज सोचा..... क्यों न कुछ शेरों को समेटा जाए ....

1,बेबसी 
कायदा सीखा न कभी ककहरा पढ़ा शायरी का,
मोहतरम शायर होने का गुमां लिए फिरते हैं. 
कभी काफिया तंग  हो जाता है,  तो कभी, 
लफ्ज़  कतरा-कतरा के निकल जाया करते हैं . 

( यह मैंने सिर्फ अपने लिए लिखा है... कृपया कोई भी इसे अन्यथा न ले|)

2. इज़हार-ए-मुहब्बत

अश्क के  पलक  की कोर तक आते - आते
राज ए दिल ज़ुबां की नोक तक आते - आते
नामालूम  कितनी सदियाँ बीत गई
अपनी मुहब्बत ए सनम जताते - जताते

 3.  बेरुखी

यूँ तो मुद्दतों उनसे मुलाकात नहीं होती
आमने-सामने होते हैं मगर बात नहीं होती.
वो तो देख के भी  फेर लेते हैं नज़रें हमसे,
अपनी निगाह भी कभी गुस्ताख नहीं होती.

 कहने को तो हजार बातें हैं लबों में दबी हुई 
 मगर क्या करें दिल की तो  जुबान नहीं होती, 
कांपने लगते हैं लब लड़खड़ा जाती है जुबान
बेरुखी उनकी ए दिल अब बर्दाश्त नहीं होती 

4. ज़ख्म

उसका दिया हर जख्म था हर्फ़ की मानिंद
उकेरा हुआ किताब ए दिल के हर वरक पे
लाख कोशिश  की मगर, मिटाया न गया
मिटाना जो चाहा तो मिट गई हस्ती दिल की

5. शीशा-ए-दिल  

वैसे तो टुकड़े किये हैं हजार बार उसने दिल के   ,
हर बार बड़े जतन से हमने उन्हें जोड़ा है .
जोड़ना चाहें भी तो अब न जुड़ेगा  फिर से ,
अबकि किरच-किरच कर उसने दिल छोड़ा है .

6. संगदिल 

अब कौन बात करे उस संगदिल से  दिल नवाजी की
हर बात का  जो दो टूक जवाब दिया करते हैं  
बने फिरते  हैं बड़े सख्त दिल जो दुनिया के लिए 
अपने सवाल पर अश्क अक्सर बहाया करते हैं 

7.आफताब

आफताब हूँ ,ताउम्र झुलसता - जलता रहा हूँ 
पर सौगात चांदनी की तुझे दिए जा रहा हूँ मैं .

रातों के सर्द साए तेरे आंचल पे बिछा कर 

खुद फलक से दरिया में छिपा जा रहा हूँ मैं .


जलें न मेरी आंच से कहीं चश्म-ए-तर तेरे ,


सितारों की बारात छोड़े   जा रहा हूँ मैं.







16 comments:

  1. वाह ... हर शेर खुद में मुकम्मल

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    1. संगीता जी, आपका तहे दिल से शुक्रिया..

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  2. बेहतीन उम्दा शे'र लिखे हैं आपने खास कर इस शेर पर कुछ ज्यादा ही दाद कुबूल कीजिये.
    आफताब हूँ ,ताउम्र झुलसता - जलता रहा हूँ
    पर सौगात चांदनी की तुझे दिए जा रहा हूँ मैं .
    रातों के सर्द साए तेरे आंचल पे बिछा कर
    ,
    खुद फलक से दरिया में छिपा जा रहा हूँ मैं .


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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अरुण.

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  3. आपने अगरचे उर्दू कायदा ना पढ़ा हो ,पर शायरी आपकी उर्दू में रची बसी होती है.आपने हमेशा उर्दू में काफी कुछ ऐसा भी लिखा है ,जो की जानकार भी नही लिख पाता.मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं.

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  4. Replies
    1. धन्यवाद जय कृष्ण जी

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  5. रातों के सर्द साए तेरे आंचल पे बिछा कर
    खुद फलक से दरिया में छिपा जा रहा हूँ मैं
    बहुत खूब !, लाजवाब ।

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    1. धन्यवाद राजपूत जी,

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  6. प्रेम जी, आपको भी नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाये.... धन्यवाद

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  7. यूँ तो मुद्दतों उनसे मुलाकात नहीं होती
    आमने-सामने होते हैं मगर बात नहीं होती.
    वो तो देख के भी फेर लेते हैं नज़रें हमसे,
    अपनी निगाह भी कभी गुस्ताख नहीं होती.

    वाह बहुत खूब।

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  8. कभी काफिया तंग हो जाता है, तो कभी,
    लफ्ज़ कतरा-कतरा के निकल जाया करते हैं .
    ...........बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  9. हर शेर उम्दा ! बहुत खूब !

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