वसंत के रंग कवित्त के संग
आय हो वसंत, बड़े बन-ठन के महंत,
ये तो कहो प्रीत बान, किस पे चलाओगे?
पीत पगड़ी पहन, पीत बाना देह धर,
पीत पुषपों से धरा सगरी सजाओगे।
विरही जनों के प्राण, बींध निज कामबाण,
तड़पता देख दूर खड़े मुसकाओगे।
रस रंग की फुहार, प्रेमी जन- मन डार
रस बरसा पियास दुगनी बढ़ाओगे।
कोयल के कुँजन में, भँवरे की गुँजन में
जानते हैं प्रेम गीत सबको सुनाओगे।
बौर अमुवा की गंध, फुलवा का मकरंद,
साँस साँस में समा, मन भरमाओगे।
पिया बिन जो उदास, विरहन का तिरास,
मीत मनमथ के, समझ कैसे पाओगे।
लिखी अँसुवन पाती, भेज पर नहीं पाती,
उन तक क्या संदेसा, मेरा पहुँचाओगे।
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.