Wednesday, 2 June 2021

कुछ कह जाना बेहतर है

 माना सहना अच्छा है लेकिन

कुछ कह जाना बेहतर है

इससे पहले कि घनीभूत हों
पीड़ा जम जाए हृदयतल में
इससे पहले कि हिम बन जाएँ
सरस भाव जो अंतस के
पिघल बहें थोड़ा-थोड़ा,
भावों का रिसना बेहतर है।
कुछ कह जाना ही बेहतर है।
कुछ अपनों की बातें जिनसे
मन में कड़वाहट घुलती हो
कुछ जिनसे मन आहत होता
कुछ नागवार गुजरतीं हों
सही वक्त से बतला देना
दुःख जतलाना ही बेहतर है।
कुछ कह जाना ही बेहतर है।
अंतर्द्वंद्वों का झंझावात,
प्रेमभाव ले उड़ता है।
मौन नहीं होता जो मुखरित,
मन भीतर भीतर मथता है।
बाँध टूटने से पहले,
थोड़ा रिस जाना बेहतर है।
कुछ कह जाना बेहतर है।
अविश्वास की धरती में,
बीज द्वेष के बोना क्यों ?
कड़वाहट से सिंचित कर,
विष बेल पनपने देना क्यों?
जड़ विद्वेष की जमने से पहले,
अंकुर उखाड़ देना बेहतर है
कुछ कह जाना ही बेहतर है।

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