प्रकृति चतेरी
रोज़ सुबह तूलिका ले अपनी,
सजा देती है आसमानी कैनवास को,
सुंदर नए रंगों से ।
कभी फूलों की लालिमा ले,
मिला देती है उसमें सूरज का सोना,
और उड़ेल देती उसे,
रुई से धुने हुए बादलों पर।
कभी चाँद के रुपहले कुर्ते से,
एक चमकता धागा खींच,
काढ़ देती है कुछ रुपहले बूटे,
आसमान के आँचल पर।
कभी रात का काजल ले धूसर कर देती,
तो कभी नीलम से आभा ले,
नीलाभ कर देती।
किरणों की डोर से बाँध
खींच लेती है ऊपर
क्षितिज में डूबा सूरज का घड़ा ,
और उड़ेल देती है
सोए अलसाये जहाँ पर
एक ठंडी, ताजा, खुशनुमा सुबह
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