हरेक बात पर कर रहे जो ये
ज़िद
कहाँ से हो सीखे अजी तुम
ये ज़िद
वज़ह-सी वज़ह तो है कोई
नहीं ,
बस ज़िदके लिए कर रहे हो
ये ज़िद
बुलाया, मनाया, जी समझाया
बहुत
मगर बात बनने न देगी ये ज़िद|
जो हमदर्द बनकर के भटका
रहे हो
सियासी है दाँव, है सियासी
ये ज़िद|
इमारत ढहा जो न पाया कोई
भी,
मकां प्यार का भी ढहा गई
ये ज़िद|
न नश्तर, न तलवार- तीरों
की चुभन है,
जिगर में चुभी जिस तरह से
ये ज़िद|
जो ज़द में रहे तो बुरी क्यों लगे,
क़यामत जो ज़द से गुज़र गई ये
ज़िद|
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