ये निज़ाम सुधरे तो कुछ बात बने।
सूरते हाल बदले तो कुछ बात बने।
आदमी में आदमी सी फितरत भी
हो नुमाया सके तो कुछ बात बनें।
शोर में मुद्दा असल न दब जाए
बात मुद्दे की निकले तो कुछ बात बने।
या तो तुझसे या अपने आप से झगड़ा,
बंद हो जाए अगर तो कुछ बात बने।
देवियों को पूजते जिस देश में हम,
बेटी कोई न तड़पे तो कुछ बात बने।
मोमबत्तियाँ जलाने से भला क्या होगा,
सीने में मशाल जले तो कुछ बात बने।
चीख़ सुन मज़लूम की, हर जुल्म के एवज
आँख सबकी छलके तो कुछ बात बने।
बिकती रही बाज़ार में अबतक कलम
तलवार बन चमके तो कुछ बात बने।
बाद ए सबा जो तेरी याद ले आती है,
ये कभी उलटी भी बहे तो कुछ बात बने।
शालिनी रस्तौगी
गुरूग्राम
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