Sunday, 13 December 2020

करें फ़रियाद किससे हम

 करें फ़रियाद किससे हम कि सुनवाई नहीं होती |

रक़म से अश्क की कर्ज़े की भरपाई नहीं होती|


यूँ करने को तो हंगामा खड़ा कर सकते हैं हम भी,

तेरी जैसी मेरी फितरत जा हरजाई नहीं होती |


सरे महफ़िल मुझे बदनाम जो तुम कर रहे हो यूँ ,

मेरी बदनामी से क्या तेरी रुसवाई नहीं होती |


न समझोगे नज़र की बात जो पहले समझ जाते,

जुबां से भी जिगर की बात समझाई नहीं होती|


दरक पड़ जाती है रिश्तों की उस दीवार में अक्सर,

यकीं के ग़ारे से जिसकी भी चिनावाई नहीं होती |


लगा इलज़ाम है उस पर ही उल्टा बेहयाई का,

नज़र जो बेशरम नज़रों से शरमाई नहीं होती|


नज़र के पेंच में दिल की न कट जाती पतंग ऐसे,

अदा से जो पलक तुमने यूँ झपकाई नहीं होती|


भरम रहता सभी को खुशमिज़ाजी का हमारी भी,

अगर हँसते हुए ये आँख भर आई नहीं होती|


ज़रा सा आसरा होता कि बेटा लौट आएगा,

नज़र माँ की बिछी रस्ते पे पथराई नहीं होती |

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks