करें फ़रियाद किससे हम कि सुनवाई नहीं होती |
रक़म से अश्क की कर्ज़े की भरपाई नहीं होती|
यूँ करने को तो हंगामा खड़ा कर सकते हैं हम भी,
तेरी जैसी मेरी फितरत जा हरजाई नहीं होती |
सरे महफ़िल मुझे बदनाम जो तुम कर रहे हो यूँ ,
मेरी बदनामी से क्या तेरी रुसवाई नहीं होती |
न समझोगे नज़र की बात जो पहले समझ जाते,
जुबां से भी जिगर की बात समझाई नहीं होती|
दरक पड़ जाती है रिश्तों की उस दीवार में अक्सर,
यकीं के ग़ारे से जिसकी भी चिनावाई नहीं होती |
लगा इलज़ाम है उस पर ही उल्टा बेहयाई का,
नज़र जो बेशरम नज़रों से शरमाई नहीं होती|
नज़र के पेंच में दिल की न कट जाती पतंग ऐसे,
अदा से जो पलक तुमने यूँ झपकाई नहीं होती|
भरम रहता सभी को खुशमिज़ाजी का हमारी भी,
अगर हँसते हुए ये आँख भर आई नहीं होती|
ज़रा सा आसरा होता कि बेटा लौट आएगा,
नज़र माँ की बिछी रस्ते पे पथराई नहीं होती |
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