फैंक दीं तुमने जो बेकार समझ के
पुर्ज़े कागज़ के नहीं, अर्ज़ियाँ हैं|
ये जो तुम अहसां दिखा के कर रहे हो,
प्यार तो नहीं तुम्हारी खुद्गार्ज़ियाँ हैं|
कारनामें जो कल किए थे तुमने,
आज अखबारों की वो सुर्खियाँ हैं|
ज़िम्मेदारी से अभी नावाकिफ़ हो
ज़िन्दगी में अभी बेफिक्रियाँ हैं|
बाप की नज़रें जो धुंधलाईं ज़रा,
बढ़ गई बेटे की गुस्ताखियाँ हैं|
फ़िक्र समझते रहे जिसको हम,
दरअसल वो तेरी फिरकियाँ हैं|
पुर्ज़े कागज़ के नहीं, अर्ज़ियाँ हैं|
ये जो तुम अहसां दिखा के कर रहे हो,
प्यार तो नहीं तुम्हारी खुद्गार्ज़ियाँ हैं|
कारनामें जो कल किए थे तुमने,
आज अखबारों की वो सुर्खियाँ हैं|
ज़िम्मेदारी से अभी नावाकिफ़ हो
ज़िन्दगी में अभी बेफिक्रियाँ हैं|
बाप की नज़रें जो धुंधलाईं ज़रा,
बढ़ गई बेटे की गुस्ताखियाँ हैं|
फ़िक्र समझते रहे जिसको हम,
दरअसल वो तेरी फिरकियाँ हैं|
लाज़वाब गज़ल👌
ReplyDeleteधन्यवाद श्वेता सिन्हा जी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहलचल में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 30 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहलचल पर जोड़ने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ध्रुव सिंह जी
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteलाजवाब !!
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