Tuesday, 27 June 2017

पुर्ज़े कागज़ के नहीं, अर्ज़ियाँ हैं|

फैंक दीं तुमने जो बेकार समझ के
पुर्ज़े कागज़ के नहीं, अर्ज़ियाँ हैं|

ये जो तुम अहसां दिखा के कर रहे हो,
प्यार तो नहीं तुम्हारी खुद्गार्ज़ियाँ हैं|

कारनामें जो कल किए थे तुमने,
आज अखबारों की वो सुर्खियाँ हैं|

ज़िम्मेदारी से अभी नावाकिफ़ हो
ज़िन्दगी में अभी बेफिक्रियाँ हैं|

बाप की नज़रें जो धुंधलाईं ज़रा,
बढ़ गई बेटे की गुस्ताखियाँ हैं|

फ़िक्र समझते रहे जिसको हम,
दरअसल वो तेरी फिरकियाँ हैं|


8 comments:

  1. लाज़वाब गज़ल👌

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    1. धन्यवाद श्वेता सिन्हा जी

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हलचल में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 30 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! 

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    1. हलचल पर जोड़ने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ध्रुव सिंह जी

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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