लो फिर
समेट लिया मैंने
अपना आसमान
अभी कल ही तो खोली थी
अपनी मुट्ठी मैंने
और फैला दिया था
दूर-दूर तक
ताने थे सुन्दर वितान
कुछ ख्वाहिशों के रंग से
रंग डाला था इन्द्रधनुष
कुछ उम्मीदों की चमक से
चमकाया सूरज का आतिशदान
नन्हीं-नन्हीं हसरतों के सितारे टाँके
झिलमिला उठा मेरा आकाश
पर न क्यूँ तुम्हें
न भाए ...
ये रंग, ये चमक, ये झिलमिलाहट
बुझा कर फिर हसरतों के दिए
बेबसी की काली चादर ढाँप
जब्त कर ली सब रंगीनियाँ फिर
फ़र्ज़ के अंधेरों में करके गर्त उन्हें फिर
अपनी मुट्ठी में
लो फिर
समेट लिया मैंने अपना आसमान
समेट लिया मैंने
अपना आसमान
अभी कल ही तो खोली थी
अपनी मुट्ठी मैंने
और फैला दिया था
दूर-दूर तक
ताने थे सुन्दर वितान
कुछ ख्वाहिशों के रंग से
रंग डाला था इन्द्रधनुष
कुछ उम्मीदों की चमक से
चमकाया सूरज का आतिशदान
नन्हीं-नन्हीं हसरतों के सितारे टाँके
झिलमिला उठा मेरा आकाश
पर न क्यूँ तुम्हें
न भाए ...
ये रंग, ये चमक, ये झिलमिलाहट
बुझा कर फिर हसरतों के दिए
बेबसी की काली चादर ढाँप
जब्त कर ली सब रंगीनियाँ फिर
फ़र्ज़ के अंधेरों में करके गर्त उन्हें फिर
अपनी मुट्ठी में
लो फिर
समेट लिया मैंने अपना आसमान
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : समझ में आया बापू .
इसे नियति कहें तो ज़्यादा सही होगा... महिलाओं को अक्सर अपना आसमान समेटना ही पढ़ता है। बहुत सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteनमस्कार आपकी यह रचना कल रविवार (08-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा आज मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर ....ललित चाहार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।
ReplyDeleteक्यों किसी ख़ुशी पर दुखों का दंश चुभ जाता है अक्सर
ReplyDeleteयह नजरिया प्रत्येक इंसान पाए और अद्भुत शक्ति के साथ आसमान को थामे। आसमान को मुठ्ठी में थामने की कल्पना अदम्य आत्मविश्वास को दर्शाता है। सुंदर कल्पना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeletehttp://dehatrkj.blogspot.com
behud sarthak abhiwyakti hai....aasman milta bhi hai to pankh kaha majboot hoten??
ReplyDeleteकभी कभी फर्ज की आगे सब कुछ अपने अंदर ही समेटना पड़ता है ... पर मरने नहीं देना चाहिए अपना आसमां ...
ReplyDeleteवाह वाह …… लाजवाब |
ReplyDeleteBahut khubsurat abhivykti.dr ajay
ReplyDeletediler logon ka kam hai ye ...ati sundar ..
ReplyDeleteफर्ज़ के तो उजाले होते हैं या होती है चक्की ,
ReplyDeleteकरो फर्ज़ अपना तुम पूरा पाओ खूब तरक्की।
रचना संसार आपका सुन्दर है। अपने सब कर्म (फर्ज़ परवरदिगार की ख़ुशी के लिए निभाओ )परमात्मा की ख़ुशी के लिए करो यही अन्धेरा उजाला बन जाएगा। ॐ शान्ति
Waah...Bahut Sunder
ReplyDeleteमधुर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteबंद मुठ्ठी लाख की....... वाह बहुत सुन्दर
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