Sunday, 25 August 2013

स्नेह पाश


कस लो अपना स्नेह पाश
कब  मुक्ति की आकांक्षी मैं
है प्रिय मुझे 
ऐसा ये बंधन 
रोम- रोम बंध जाती मैं
निज मन पर रहा 
वश कहाँ मेरा 
परवश होकर 
भटके यह बस 
जिस ओर मैं चाहूँ 
जिस ओर मैं जाऊं 
तुम तक पहुँचाते
मेरे ये पग 
दिशा भ्रांत मैं 
विवश अनुगामी
स्वेच्छाचारी मन की बन 
फिर आ जाती पास तुम्हारे 
लो,फिर लो पाश ये कस 








14 comments:

  1. मन मधुरित करने वाली पंक्तियाँ.

    ReplyDelete
  2. खूसूरत अभिव्यक्ति बधाई

    ReplyDelete
  3. प्रेम मोहबंध जादुई होता है

    ReplyDelete
  4. सुंदर मुक्त भाव लिए कविता.

    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  5. वाह ..
    खूबसूरत !

    ReplyDelete
  6. प्रेम में डूबी हुई कविता... बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  7. असल मुक्ति तो प्रेम पाश में बंधने के बाद ही आती है ...
    भाव मय प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  8. समर्पित प्रेम में डूबी बहुत सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  9. how romantic line.......
    your most welcome on my blog.
    http://iwillrocknow.blogspot.com/

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...
Blogger Tips And Tricks|Latest Tips For Bloggers Free Backlinks