एक नज़र देख ले किस्मत उसकी संवर जाए है
कुछ ऐसा नूर है उसमें, ऐसी अदा पायी है
जो भी देखे है नज़र, उसपे ठहर जाए है
पिघलते कांच-सा वो बह रहा रगों में मेरी
कभी दिल में तो कभी खूँ में उतर जाए है
जिन्दा कहाँ है हम जो तुझे जल्दी है पड़ी
दो घड़ी रुक ऐ मौत, कि वो ठहर जाए है
अजीब शै है मुहब्बत नींद गई चैन गया
साँस जाने में बस अब, कोई कसर जाए है
है खौफज़दा खुद दहशत भी दहशतगर्दों से
सामने देख इन्हें मुड़ खुद ही कहर जाए है
तल्खियों ने किया दुश्वार मयकशी को मेरी
बूंद उतरे गले में तो लगे जैसे जहर जाए है
ऐशाइशें जुड़ीं हों भले दुनिया की घरों में
एक माँ न हो तो परिवार बिखर जाए है
नूर ऐ इलाही है रोशन ज़र्रे-ज़र्रे में जहाँ के
वो ही वो है बस जहाँ तक नज़र जाए है
महफ़िल ऐ शम्मा में ज़िक्र हो परवानों का
सबसे पहले मेरा ही, किया जिकर जाए है
अजब सी ताज़गी है कि तुझे सोच भी लूँ
चहरे से शिकन, जेहन से फिकर जाए है
मरने से पहले एक मुलाकात का वादा था
इन्तेज़ार उनको कब मेरे मरने की खबर आए है
आज शब उसने मिलने का पैगाम दिया है
आँखों ही आँखों में बीता हरेक पहर जाए है
वाह वाह !!! बहुत सुंदर गजल ,,,शालिनी जी,,,बधाई
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
बहुत ही उमदा...
ReplyDeletebahut sundar :)
ReplyDeleteगजब की ख्वाहिश अजब दास्ताँ लेकर
ReplyDeleteसूफी पुट लिए अति सुन्दर कृति.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआठवां शेर लाजवाब.....1,3,5,9,10,11,13 शेर बढ़िया लगे ..........एक मुक़म्मल ग़ज़ल दाद कबूल करे।
ReplyDeleteएक बात बस इतनी कहना चाहूँगा कुछ शेर बेवजह बाधा बन गए रवानगी में...... बहुत लम्बी ग़ज़ल कहने से थोडा परहेज़ करें |
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल .
ReplyDeleteउम्दा गज़ल ... हर शेर लाजवाब है ...
ReplyDeleteहर एक शेर है, किसी हिरकनी की तरह
ReplyDeleteपढते पढते चमक, आँखों को चुंधा जाए है ।