Wednesday 11 September 2013

नारी ( कुण्डलिया छंद)


नारी धुरी समाज की, जीवन का आधार|
बिन नारी जीवन नाव, डूबे रे मंझधार ||
डूबे रे मंझधार, यह गुरु प्रथम बालक की |
संस्कार की दात्री, पोषक है आदर्श की ||
नारी का अपमान, पुरुष की गलती भारी|
मानवता का बीज, सींचे कोख में नारी ||

14 comments:

  1. नमस्कार आपकी यह रचना कल शुक्रवार (13-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. वाह बहुत खूब

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  3. सुंदर प्रस्तुति शालिनी जी

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  4. सुन्दर भाव लिए कुंडलियाँ ...
    सटीक ...

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  5. सुन्दर भाव सुन्दर अर्थ। सौदेश्य लेखन।

    मानवता का बीज कोख में बोवे नारी ,

    बीज करे अपमान सो होवे हंकारी

    बहुत सुन्दर रचना है भाव और अर्थ की अन्विति लिए।

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  6. बहुत खुबसूरत भावमय कुंडलिया !!

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  7. ब्लॉग प्रसारण अन्तिम पोस्ट - कुण्डलिया छंद विषय नारी [शालिनी रस्तोगी]
    आदरणीया शालिनी जी सहमत हूँ आपसे नारी से ही सब कुछ है इस धरा पर बिन नारी यह धरा अस्तित्व विहीन है, बेहद सुन्दर कुण्डलिया छंद दिल से ढेरों बधाई स्वीकारें.

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