Sunday, 15 September 2013

राजनीति ( कुण्डलिया छंद)



राजनीति में चल रहा, लाशों का है खेल |
धूर्त मिले हैं धूर्त से, गिद्धों का है मेल ||
गिद्धों का है मेल,  धर्म की आँच जलाएँ|
पाने सत्ता का लाभ, देश को हैं सुलगाएँ||
लालच का तूफान, फैली हर ओर अनीति |
लोभियों  की जमात, बनी है ये राजनीति ||

9 comments:

  1. बहुत खूब सुंदर छंद ! बेहतरीन प्रस्तुति !!

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  2. नमस्कार आपकी यह रचना कल सोमवार (16-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  3. कुछ नहीं देखती ये राजनीति ... इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता ...

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  4. आद्रेया शालिनी जी कम पंक्तियों में ही राजनीति के गन्दे माहौल को बखुबी प्रस्तुत किये है जो सत्य है,आभार।

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  5. aaj hame apne bachchon ki liye desh ki rajniti batlni hogi. vaise gandi ho chuki rajniti ka aapne bhut achha varnan kiya hai

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