जब ज़रा जिंदगी से, घबरा-सा जाए है जी
जहमत मरने की भी न, उठाना चाहे है जी
कहता है जान-ए-बबाल है जीना, जिंदगी है जंग
जिंदा रहने की जुस्तज़ू में, जान दिए जाए है जी.
जी जाएँ दो घड़ी जो जरा, जी भर तुझे देख लें
रू-ब-रू देख तुझे, हलक में आ अटक जाए है जी
जब-जब तेरा जलवा नुमाया हो, कि जुनूं में
इक-इक अदा पे तेरी, सौ बार, मरे जाए जी
हर रोज का वही रोना, वही फ़साना औ वही हम,
अपने से ही कुछ अलग, हमें देखना चाहे है जी
हज़ार जज़्बे हैं जी में, जंजाल सौ ज़माने के
खुद के ही जाल में , मकड़ी सा फँसता जाए है जी
वैसे तो जिस्म और जिस्म की ज़रूरतों से बंधा है
पोशीदगी ज़माने से चाहे , फ़कीर दिखना चाहे है जी.
सौ जन्नतों औ दो जहाँ की निअमत निसार दूं
तू समझा दे जो इक बार तो ज़रा , संभल सा जाए ये जी
जी का जंजाल है ये जी.....
ReplyDelete:-)
बहुत प्यारी रचना शालिनी जी
अनु
hardik dhanyvaad anu ji..... bas thodi der se kiya hai... iske liye sorry!
Deleteवाह ,,, बहुत सुंदर प्रस्तुती,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
धन्यवाद धीरेन्द्र जी!
Deleteहज़ार जज़्बे हैं जी में, जंजाल सौ ज़माने के
ReplyDeleteखुद के ही जाल में , मकड़ी सा फँसता जाए है जी
यही जी का जंजाल बन जाता है ...सुंदर अभिव्यक्ति
हार्दिक आभार संगीता जी!
Deleteवाह .. क्या बात है ... जिंदगी से जुडी बातें हैं इन शेरों में ..
ReplyDeleteजी खुश हो गया जी :-)
ReplyDeleteआपको पसंद आया... हमारी खुशकिस्मती!
Deleteबहुत बढ़िया मैम!
ReplyDeleteसादर
हज़ार जज़्बे हैं जी में, जंजाल सौ ज़माने के
ReplyDeleteखुद के ही जाल में , मकड़ी सा फँसता जाए है जी
जिंदगी के जंजालों का बढ़िया लेखाजोखा.
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
Deleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारें, प्रतीक्षा है आपकी .
धन्यवाद रचना जी एवं शुक्ल जी!
Delete.भावनात्मक प्रस्तुति आभार रफ़्तार जिंदगी में सदा चलके पाएंगे मोहपाश छोड़ सही रास्ता अपनाएं
ReplyDeleteहज़ार जज़्बे हैं जी में, जंजाल सौ ज़माने के
खुद के ही जाल में , मकड़ी सा फँसता जाए है जी
वैसे तो जिस्म और जिस्म की ज़रूरतों से बंधा है
पोशीदगी ज़माने से चाहे , फ़कीर दिखना चाहे है जी.
bahut achchhi prastuti hr sher lakbab lage ...mai to sirf itana kahana chahuga इस जहाँ में आग को भी फख्र हो जाता है तब.|
हस के परवाना कोई बेफिक्र होजलता है जब||
ये शहर है आशिको का सोच के चलना जरा |
शोलो की दहशत से देखो वो भला डरता है कब
बहुत खूबसूरत शेर लिखा है नवीन जी.... वाह!
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