Friday, 6 July 2012

अजनबी



कोई तो मिले 
अजनबी
देख जिसे, उपजे  जिज्ञासा 
विस्फारित हों नैन
नए प्रश्न कुलबुलाएँ 
सर उठायें मन में 
बात-मुलाकात करने को
उत्सुक हो मन 


अजनबी देश के, अजनबी लोगों के 
अनगिनत किस्सों में
दूर तक साथ साथ चलते
बस बीतातें जाएँ 
दिन - रैन 


न बेकार के शिकवे
न बेवज़ह शिकायतें 
न परिचय की अड़चन
न रिश्तों  के बंधन 

दोस्ती-दुश्मनी, जान-पहचान से परे
खुशबू की तरह 
जन्मे, बिकसे, पोषित हो 
अनजानापन 



जो कुछ दिल कहना चाहे
बिन सकुचाए
निर्द्वन्द्व, खोल कर रख दें  
अंतस............



4 comments:

  1. जो कुछ दिल कहना चाहे
    बिन सकुचाए
    निर्द्वन्द्व, खोल कर रख दें
    अंतस............
    सरल सहज शब्दों में गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.

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  2. कोई तो हो ऐसा अजनबी ... सच है अजनबी तो कई मिलते हैं पर कोई साथ चलने वाला नहीं मिलता ... पर जो साथ चले वो अजनबी भी तो नहीं रहता ...

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  3. बहुत खुबसूरत पोस्ट.......ब्लॉग का नया स्वरुप सुन्दर है।

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