अनसुलझी उलझन
नामालूम क्यों
उलझते से जा रहें हैं
जीवन के सिरे
एक-दूसरे में गुंथ
हज़ार गांठे लगाते
और मैं
बड़े सब्र से
एक-एक गांठ को सुलझाती
खुद को यकीन दिलाती
कि हाँ
अब सब कुछ ठीक है
शायद अब हर उलझन
सुलझ गई है
तभी न जाने कहाँ से
कुछ और सिरे
सिर उठाते
बेतरह गुंथ जाते
छोड़ जाते
हर बार
एक अनसुलझी
उलझन........
प्रशसनीय.... मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteयही तो जीवन है....
ReplyDeleteएक को मनाओ तो,दूजा रूठ जाता है......
सुन्दर भाव
अनु
यही होता है हम जीवन भर सुलझाने में लगे रहते हैं और जिंदगी और उलझती चली जाती है.....बहुत खूबसूरत पोस्ट।
ReplyDeleteहम ऐसे ही इसे सुलझाने की कोशिश में लगे रहते हैं और जिंदगी यूँ ही उलझती चली जाती है.....बहुत ही सुन्दर पोस्ट।
ReplyDeletejaane kab suljhengi uljhane...
ReplyDeleteइन उलझनों को सुलझाते सुलझाते ज़िंदगी तमाम हो जाती है
ReplyDeleteइसी का नाम जीवन है ... एक सुलझती है तो दूसरी उलझ जाती है ... जीवन ऐसे ही बीत जाता है ...
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