Wednesday 26 October 2011

कविता............


दिल के उद्गारों का दमन कर
भावनाओं को पीछे छोड़
विचार पूर्वक लिखी गई
सप्रयास कविता

दिमाग के बोझ से दबी
ह्रदय की दबी – दबी आह सी
भारी भरकम शब्दों के बोझ से
कहराती कविता

बहुत कुछ कह पाने की
कोशिश में
कुछ भी न कह पाती
मन की छिपे भावों को
प्रकट करने को
अकुलाती कविता

7 comments:

  1. बहुत कुछ कह पाने की
    कोशिश में
    कुछ भी न कह पाती
    मन की छिपे भावों को
    प्रकट करने को
    अकुलाती कविता

    अक्सर ऐसा होता है।
    सच बात कही आपने।

    सादर

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  2. शालिनी जी
    सस्नेहाभिवादन !


    आपकी बहुत कुछ कह पाने की
    कोशिश में
    कुछ भी न कह पाती
    मन के छुपे भावों को
    प्रकट करने को
    अकुलाती
    ख़ूबसूरत कविता के लिए आभार और बधाई!

    बहुत प्यारा ख़ूबसूरत ब्लॉग है आपका !
    बस , पृष्ठ में गहरारंग होने के कारण Blog Archive देखने में दिक्कत आ रही है … आपकी कुछ पुरानी पोस्ट्स देखने फिर आना है… :)
    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. ख़ूबसूरत कविता के लिए बधाई!

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  4. कविता का अंतर्द्वंद्व ...

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  5. दिमाग के बोझ से दबी
    ह्रदय की दबी – दबी आह सी
    भारी भरकम शब्दों के बोझ से
    कहराती कविता

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  6. apki yah rachan behad sundar lagi SHALINI ji hardik badhai .....mere naye post pr apka swagar hai.

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  7. ह्रदय की दबी – दबी आह सी
    भारी भरकम शब्दों के बोझ से
    कहराती कविता
    ..........हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! बेहतरीन प्रस्तुती!

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