रह - रह कर सर उठती हैं
अदम्य इच्छाएँ
अचेतन से निकल
अपने आदिम रूप में ही
प्रकट होना चाहती हैं
अदृश्य इच्छाएँ
तोड़ने को हर बंधन
रहती हैं आतुर हर पल
बिन सोचे इसका प्रतिफल
संतुष्टि चाहती हैं
भ्रम्य इच्छाएँ
सुनहले ख़्वाब दिखा
अपने जाल में उलझा
अजनबी दुनिया में पहुंचा
मन को भरमाना चाहती हैं
सुनहले ख़्वाब दिखा
ReplyDeleteअपने जाल में उलझा
अजनबी दुनिया में पहुंचा
मन को भरमाना चाहती हैं
सुरम्य इच्छाएँ
सही कहा आपने पर इच्छाओं से पार पाना लगभग असंभव है।
दीप पर्व की ढेर सारी शुभ कामनाएँ!
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अंधेरा या सवेरा ?
Nice
ReplyDeletehttp://www.poeticprakash.com/
इच्छाएं अनंत हैं!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबिल्कुल सही चित्रण किया है।
ReplyDeleteआप सभी का ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ ........ ये इच्छाएं ही मनुष्य को अपने वशीभूत कर उस पर अपना शासन करती हैं ...... धन्यवाद !!!
ReplyDeletebehad khoobsurat......
ReplyDeleteअसीमित इच्छाओं के भँवर में फँसे मानव के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteAPKI NAYEE RACHANA KI PRATEEKSHA KE SATH APNE NAYE POST PR AMANTRIT KARATA HOON
ReplyDeleteसही चित्रण किया है सार्थक प्रस्तुति..आभार
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