दिल के उद्गारों का दमन कर
भावनाओं को पीछे छोड़
विचार पूर्वक लिखी गई
सप्रयास कविता
दिमाग के बोझ से दबी
ह्रदय की दबी – दबी आह सी
भारी भरकम शब्दों के बोझ से
कहराती कविता
बहुत कुछ कह पाने की
कोशिश में
कुछ भी न कह पाती
मन की छिपे भावों को
प्रकट करने को
अकुलाती कविता
बहुत कुछ कह पाने की
ReplyDeleteकोशिश में
कुछ भी न कह पाती
मन की छिपे भावों को
प्रकट करने को
अकुलाती कविता
अक्सर ऐसा होता है।
सच बात कही आपने।
सादर
ReplyDelete♥
शालिनी जी
सस्नेहाभिवादन !
आपकी बहुत कुछ कह पाने की
कोशिश में
कुछ भी न कह पाती
मन के छुपे भावों को
प्रकट करने को
अकुलाती ख़ूबसूरत कविता के लिए आभार और बधाई!
बहुत प्यारा ख़ूबसूरत ब्लॉग है आपका !
बस , पृष्ठ में गहरारंग होने के कारण Blog Archive देखने में दिक्कत आ रही है … आपकी कुछ पुरानी पोस्ट्स देखने फिर आना है… :)
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ख़ूबसूरत कविता के लिए बधाई!
ReplyDeleteकविता का अंतर्द्वंद्व ...
ReplyDeleteदिमाग के बोझ से दबी
ReplyDeleteह्रदय की दबी – दबी आह सी
भारी भरकम शब्दों के बोझ से
कहराती कविता
apki yah rachan behad sundar lagi SHALINI ji hardik badhai .....mere naye post pr apka swagar hai.
ReplyDeleteह्रदय की दबी – दबी आह सी
ReplyDeleteभारी भरकम शब्दों के बोझ से
कहराती कविता
..........हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! बेहतरीन प्रस्तुती!