औरत की आवाज़
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औरत की आवाज़ हूँ मैं ,
हमेशा से पुरज़ोर कोशिश की गई,
मुझे दबाने की ,
हमेशा सिखाया गया मुझे ....... सलीका ,
कितने उतार-चढ़ाव के साथ,
निकलना है मुझे |
किस ऊँचाई तक जाने की सीमा है मेरी ,
जिसके ज्यादा ऊँची होने पर मैं,
कर जाती हूँ प्रवेश
बदतमीज़ी की सीमा में ... |
कैसे है मुझे तार सप्तक से मंद्र तक लाना ,
कब है मुझे ख़ामोशी में ढल जाना ,
सब कुछ सिखाया जाता है ... प्रारंभ से ही |
कुछ शब्दों का प्रयोग
जिन्हें अक्सर प्रयोग किया जाता है
औरत-जात के लिए
निषिद्ध है मेरे लिए
क्योंकि एक औरत की आवाज़ हूँ मैं |
अन्याय, अत्याचार या अनाचार के विरोध में
मेरा खुलना
इजाज़त दे देता है लोगों को
लांछन लगाने की
मेरा चुप रहना, घुटना, दबना सिसकना ही
दिलाता है औरत को
एक देवी का दर्ज़ा ,
मेरे खुलते ही जो बदल जाती है
एक कुलच्छिनी कुलटा में |
मुझ से निकले शब्दों को हथियार बना
टूट पड़ता है यह सभ्य समाज
सभी असभ्य शब्दों के साथ
उस औरत पर
खामोश कर देने को मुझे
हाँ
एक औरत की आवाज़ हूँ मैं
सिसकी बन घुटना नहीं चाहती
चाहती हूँ गूँजना
बनकर .............. ब्रह्मनाद |
द्वारा
शालिनी रस्तौगी
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