Thursday, 2 January 2020

खामोश दिल

कितनी बार किया चुप इसको
समझाया कितना इस दिल को
नहीं, अभी समय नहीं कुछ कहने का
मनमानी का, जज़्बात में बहने का,
कुछ सब्र और, कुछ और सह ले,
बस थोड़ी देर तक और चुप रह ले,
अभी हैं ज़िम्मेदारियाँ बड़ी
अभी हज़ार ज़रूरतें दरवाज़े खड़ी
अभी नहीं है वक़्त तेरी सुनने का,
थोड़ा ठहर , तेरा भी वक़्त आएगा
दिल , तू भी दिल की कर पाएगा...
तब तू भी कर लेना मनमानी
कह लेना अपनी अनकही कहानी
जी लेना अपने ख्वाब सुनहले
बीन लेना आस के मोती रुपहले
पर कुछ सब्र तो रख ले पहले
कुछ और समय तू चुप रह ले ....
फिर दिल ने चुप रहना सीखा,
भीतर भीतर घुटना सीखा ,
अब सीख गया जब चुप रहना
हर पल घुट-घुट कर जीना
मैं कहती इससे ... कुछ तो कह
कुछ बोल अरे, कुछ मन की कह ....
कुछ रीती-रीती आँखों से
कुछ बेदिली से, कुछ आहों से
यूँ बोला दिल 'बस रहने दे,
खामोश यूँही सब सहने दे,
न अब सपने न बातें हैं
सब बीते युग की बातें हैं ....
हाँ ऐसे जीना सीख गया
ले, मैं चुप रहना सीख गया।

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