Tuesday 25 July 2017

हसरत नई हर रोज़ ही मचलती तो है


इस मोड़ से इक राह भी गुजरती तो है
दिल से तेरे हम तक जो पहुँचती तो है .

किस्मत तो किस्मत है, यकीं न इस पे करना
किस्मत हरेक की नए रंग बदलती तो है

सिर लाख कुचलो दिल में उठती हसरतों का पर
हसरत नई हर रोज़ ही मचलती तो है

कूँचा ए मैकदे से गुज़ारना संभल के तुम
गुजरो इधर से जब नीयत बहकती तो है .

लाचारियों की राख के अन्दर दबी हुई
आक्रोश की इक चिंगारी सुलगती तो है

इन्तेहा जुल्मों की ये देख अपनी जात पे
भीतर ही भीतर ये जमीं दहलती तो है .
~~~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी 
(चित्र गूगल से साभार)


1 comment:

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