आइना थोड़े ही है जो पौंछ कर चमक जाएगा।
कोयला है, जितना पौंछो, काला ही नज़र आएगा।
है बसी रग-रग में हरकत, फितरती है उसका मिजाज़।
तुमने क्या सोचा कि समझाने से वो बदल जाएगा।
बाँध तूफां को अपने पालों में चलता है जो।
वो सफ़ीना आँधियों के रुख से क्या दहल जाएगा।
गर्दिशों ने है सँवारा, ठोकरों ने है सँभाला ।
काँच समझा है क्या उसे, जो छूते ही बिखर जाएगा।
एक दूजे की टाँग को जकड़े खड़े हैं लोग देखो।
देखते हैं कौन, किससे, कैसे अब आगे निकल पाएगा।
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शालिनी रस्तौगी
कोयला है, जितना पौंछो, काला ही नज़र आएगा।
है बसी रग-रग में हरकत, फितरती है उसका मिजाज़।
तुमने क्या सोचा कि समझाने से वो बदल जाएगा।
बाँध तूफां को अपने पालों में चलता है जो।
वो सफ़ीना आँधियों के रुख से क्या दहल जाएगा।
गर्दिशों ने है सँवारा, ठोकरों ने है सँभाला ।
काँच समझा है क्या उसे, जो छूते ही बिखर जाएगा।
एक दूजे की टाँग को जकड़े खड़े हैं लोग देखो।
देखते हैं कौन, किससे, कैसे अब आगे निकल पाएगा।
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शालिनी रस्तौगी
बाँध तूफां को अपने पालों में चलता है जो।
ReplyDeleteवो सफ़ीना आँधियों के रुख से क्या दहल जाएगा।
प्रेरणात्मक और उत्साहवर्धक सुंदर पंक्तियाँ। साधुवाद।
आप मेरे बलाग purushottamjeevankalash.blogspot.com पर सादर आमंत्रित हैं।
पुरुषोत्तम जी, हार्दिक धन्यवाद
Deleteबुहत खूब ... गहरे शेर लिए अच्छी ग़ज़ल ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार दिगंबर जी
Deleteआज का यथार्थ .सब एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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