अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
औपचारिकताओं में अक्सर खो जाता है .... अपनापन सम्बन्ध खोने लगते हैं मायने मंद पड़ जाती है रिश्तों की ऊष्मा दम तोड़ देती है ..आत्मीयता और शेष रह जाती हैं सिर्फ ठंडी, उबाऊ औपचारिकताएँ ....
आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति -- आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी! -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर…!
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
सही कहा आपने, औपचारिकताओं में सम्बन्ध खोने लगते है ...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
सच कहा है ... जहाँ रिश्ता हो वहाँ इनका कोई काम नहीं ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धन्यबाद .
ReplyDeleteऔर देर हो जाती है
ReplyDeleteऔपचारिकता भी
बोर हो जाती है :)
बहुत खूब !
बेहद गहरे अर्थों से लबरेज़ रचना..
ReplyDeleteवाह ! बहुत कम शब्दों में बहुत गहन भाव |
ReplyDeleteआपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDelete--
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!