Monday 10 February 2014

औपचारिकताएँ


औपचारिकताओं में अक्सर 

खो जाता है .... अपनापन 


सम्बन्ध खोने लगते हैं मायने 


मंद पड़ जाती है

 
रिश्तों की ऊष्मा

 
दम तोड़ देती है ..आत्मीयता 


और शेष रह जाती हैं


सिर्फ


ठंडी, उबाऊ 


औपचारिकताएँ ....

7 comments:

  1. सही कहा आपने, औपचारिकताओं में सम्बन्ध खोने लगते है ...!
    RECENT POST -: पिता

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  2. सच कहा है ... जहाँ रिश्ता हो वहाँ इनका कोई काम नहीं ...

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धन्यबाद .

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  4. और देर हो जाती है
    औपचारिकता भी
    बोर हो जाती है :)

    बहुत खूब !

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  5. बेहद गहरे अर्थों से लबरेज़ रचना..

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  6. वाह ! बहुत कम शब्दों में बहुत गहन भाव |

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  7. आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
    --
    आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (03-03-2014) को ''एहसास के अनेक रंग'' (चर्चा मंच-1540) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर…!

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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