ज़रूरत है आज फिर से
प्राथमिकताएँ तय करने की
वख्त आ चला
निर्णय का
कुछ सम्बन्ध खंगालने का
बुनने का नए रिश्ते, कुछ को उधेड़ने का
आवश्यकता है
टटोलने की अपना ही मन
अब करना फिर से आत्मावलोकन
अम्बार सा लगता जा रहा
स्मृतियों का मन में
आज कुछ क्षण बैठ चैन से
करनी है छंटाई
दुखद पलों को निकाल मन से
हैं सहेजने कुछ सुखद पल
बंधनों में ढील दे
मुक्त करना है कुछ परिंदों को
जो दमन में न समाएँ
उन्मुक्त गगन के उन बाशिंदों को
मन बैठ
कुछ देर कर ले मंथन
आज करने का चिंतन
है फिर से
ज़रूरत ......
प्राथमिकताऐं ही तो
ReplyDeleteतय नहीं हो पा रही हैं
हर जगह फालतू भीड़
बढ़ती जा रही है :)
गहन भाव सुन्दर कविता ..
ReplyDeletesach kaha aapne chintan jaroori hai
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर रचना |
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