Friday, 20 December 2013

प्राथमिकताएँ.....


ज़रूरत है आज फिर से 
प्राथमिकताएँ तय करने की 
वख्त आ चला 
निर्णय का 
कुछ सम्बन्ध खंगालने का 
बुनने का नए रिश्ते, कुछ को उधेड़ने का 
आवश्यकता है 
टटोलने की अपना ही मन 
अब करना फिर से आत्मावलोकन 
अम्बार सा लगता जा रहा 
स्मृतियों का मन में 
आज कुछ क्षण बैठ चैन से 
करनी है छंटाई 
दुखद पलों को निकाल मन से 
हैं सहेजने कुछ सुखद पल 
बंधनों में ढील दे 
मुक्त करना है कुछ परिंदों को 
जो दमन में न समाएँ
उन्मुक्त गगन के उन बाशिंदों को 
मन बैठ 
कुछ देर कर ले मंथन 
आज करने का चिंतन 
है फिर से 
ज़रूरत ......



4 comments:

  1. प्राथमिकताऐं ही तो
    तय नहीं हो पा रही हैं
    हर जगह फालतू भीड़
    बढ़ती जा रही है :)

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  2. गहन भाव सुन्दर कविता ..

    ReplyDelete
  3. sach kaha aapne chintan jaroori hai

    ReplyDelete
  4. बहुत गहन और सुन्दर रचना |

    ReplyDelete

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