दुनिया मेरी सुने, इसलिए कुछ कहूँ मैं,
कि अपने दिल ही की, कही बस सुनूँ मैं,
बदी की मखमली, नेकी की पथरीली
बता दिल राह कौन-सी पे चलूँ मैं .
पाकीज़गी की अपनी, औरत ही दे परीक्षा
क्यूँ शक तेरा मिटाने, हर बार ही जलूँ मैं
जब चाहा तूने तोड़ा, मिटाया, बना दिया .
मिट्टी की मानिंद तेरे सांचों में क्यूँ ढलूँ मैं
मुँह खोलने पे तल्ख, कहती हमें ये दुनिया,
बेहतर यही कि बस अब,खामोश ही रहूँ मैं।
वाह ! बहुत उम्दा अभिव्यक्ति...! बधाई
ReplyDeleteRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
बहुत बेहतरीन...
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही गहन और सुन्दर ।
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