Tuesday, 4 June 2013

विकल प्राण मेरे ..



है कोई नहीं संताप 
फिर क्यों 
विकल प्राण मेरे ..
किस अग्नि में जले आत्मा 
जब तुम हो प्राण मेरे 
आच्छादन बन  अस्तित्व तुम्हारा 
ढाँप रहा मुझ विरहन को 
फिर क्यों और कैसी व्याकुलता 
मन सुलझा दे इस उलझन को 
स्थिरता ऊपर पर भीतर
उथल पुथल प्राण मेरे 
है छद्म अरे यह विरह और 
है भ्रम ये दूरी प्रियतम से 
मन की आँखों को खोल ज़रा 
फिर हर पल उनसे संगम है 
 समझाती कितना इनको पर 
जाते क्यों न बहल प्राण मेरे 

13 comments:

  1. बिरहन की मनस्थिति को प्रकट करती भावप्रवण, सुंदर रचना।

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  2. आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार

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  3. बहुत सुन्दर ...भावप्रबल रचना .

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  4. बहुत सही कहा आपने
    प्रियतम से विरह कब होता ही है
    बस मन की छद्म अवस्था है यह
    साभार!

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  5. बहुत सही कहा आपने
    प्रियतम से विरह कब होता ही है
    बस मन की छद्म अवस्था है यह
    साभार!

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  6. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

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  7. मन की व्यथा कथा को मार्मिकता से उकेरा है
    वाह बहुत खूब
    सादर

    आग्रह है
    गुलमोहर------

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  8. वाह!बहुत सुन्दर रचना

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  9. अनुपम, अद़भुद, अतुलनीय, अद्वितीय, निपुण, दक्ष, बढ़िया रचना
    हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्‍त करने के लिये एक बार अवश्‍य पधारें
    टिप्‍पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें
    MY BIG GUIDE
    नई पोस्‍ट
    अब 2D वीडियो को देखें 3D में

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  10. मन की विकलता ... प्रेम को आतुर है ...
    सुन्दर भावमय ...

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