दो हिस्सों में बँटा हुआ ........वजूद
पहला, दूसरे से बिलकुल जुदा
दोनों ही, एक दूसरे पर
हावी होने की कोशिश में
एक दूसरे को मात देते
अपना मालिकाना हक़ जताते
तन और मन पर
उन्हें हरदम अपने
काबू में रखना चाहते
एक आवारा , एक संजीदा
एक रुबरु , एक पोशीदा
कितने ही अलग-अलग चेहरों में
संजीदगी से निभाना चाहता
अपना हर किरदार
पर
आवारा वजूद तो
बिना मकसद, बेवजह भटकता
हर पहरे, हर हद को पार कर गुज़रता
चाँद के साथ,
आवारगी, रात भर करना चाहे
हर पिंजरे को तोड़
पंछियों सी, परवाज़ चाहे
न कोई बंदिश, न समझौता
बस मनमर्जी ही इसे भाए
ढीठ है, जिद्दी है, सख्तजान बड़ा
न दीन से डरे
न दुनिया की सुनना चाहे
बस अपने ही दोनों हिस्सों को
मनाता समेटता, संजोता
काबू में इन्हें रखने को
सौ जतन करता
हरदम
यह वजूद
पहला, दूसरे से बिलकुल जुदा
दोनों ही, एक दूसरे पर
हावी होने की कोशिश में
एक दूसरे को मात देते
अपना मालिकाना हक़ जताते
तन और मन पर
उन्हें हरदम अपने
काबू में रखना चाहते
एक आवारा , एक संजीदा
एक रुबरु , एक पोशीदा
कितने ही अलग-अलग चेहरों में
संजीदगी से निभाना चाहता
अपना हर किरदार
पर
आवारा वजूद तो
बिना मकसद, बेवजह भटकता
हर पहरे, हर हद को पार कर गुज़रता
चाँद के साथ,
आवारगी, रात भर करना चाहे
हर पिंजरे को तोड़
पंछियों सी, परवाज़ चाहे
न कोई बंदिश, न समझौता
बस मनमर्जी ही इसे भाए
ढीठ है, जिद्दी है, सख्तजान बड़ा
न दीन से डरे
न दुनिया की सुनना चाहे
बस अपने ही दोनों हिस्सों को
मनाता समेटता, संजोता
काबू में इन्हें रखने को
सौ जतन करता
हरदम
यह वजूद
shalini ji vajood ka bahut hi gahan vishleshan kiya hai aapne ....badhai sweekaren Sahalini ji .
ReplyDeleteधन्यवाद नवीन जी!
Deleteहम सबके भीतर यह दो वजूद मौजूद रहते हैं ...कभी ऊँगली पकड़कर एक दूसरे को सहारा देते हैं...तो कभी तलवारें खींचकर टूट पड़ते हैं .....
ReplyDeleteनई सी रचना!
रचना पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद सरस जी!
Deleteबस अपने ही दोनों हिस्सों को
ReplyDeleteमनाता समेटता, संजोता
काबू में इन्हें रखने को
सौ जतन करता
हरदम
यह वजूद ... सूक्ष्म विवेचना
बहुत-बहुत धन्यवाद रश्मि जी !
Deleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...
ReplyDeleteधन्यवाद सदा जी!
Deleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteइसी रस्साकशी में उम्र गुजर जाया करती है...
कभी कभी खो जाता है वजूद..पूरा का पूरा...
धन्यवाद अनु जी!
Deleteइंसान के अंदर भी एक इंसान होता है जोप अक्सर सामने आ जाता है और कभी हंसी उड़ाता है कभी दर्द देता है ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteदिगंबर जी, प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !
Deleteदो हिस्सों में बंता वजूद .... एक यथार्थपरक रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी पधारने का कष्ट करें.
धन्यवाद शुक्ल जी .....
Deleteसुभानाल्लाह भीतरी कशमकश की सुन्दर प्रस्तुति.....लाजवाब।
ReplyDeletedhanyvaad imraan ji!
Deleteमार्मिक प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "आचार्य चतुरसेन शास्त्री" पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए इंतजार करूंगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद श्रीमान !
Deletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/6.html
ReplyDeleteबेचैन वजूद का सही चित्रण।
ReplyDeleteरचना के गहरे भाव मन को छू गए. नमन.
ReplyDeletebahut gahari aur dil ko chhu lenewali hai apki Rachna ..
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post.html