मुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
फिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने
टीस उठती है है अब कम कि भर गए घाव कई
कुरेद के नासूर बनाओ उन्हें, कि कोई नज़्म बने
आ गया हौंसला बहुत अब दर्द सहने का
दर्द की इन्तहां बढाओ, कि कोई नज़्म बने
खारा पानी भी आँखों का सूख चला है अब
खून के आँसू रुलाओ कि कोई नज़्म बने
हर बददुआ खो रही है असर कि फ़ना करने को हमें
अब तरकीब नई लाओ कि कोई नज़्म बने
ठोकर खा के गिरने से बचे हैं फिर से हम
संग राह में कुछ और बिछाओ कि कोई नज़्म बने
बुझा चुके हर चराग, स्याह और करने को रात
टिमटिमाते तारों को भी बुझाओ कि कोई नज़्म बने
तुम्हारे जश्न में रौनक अभी है कम ज़रा
मेरे हालात पे ठहाके लगाओ कि कोई नज़्म बने
बहुत खूब.............
ReplyDeleteबुझा चुके हर चराग, स्याह और करने को रात
टिमटिमाते तारों को भी बुझाओ कि कोई नज़्म बने
लाजवाब गज़ल..हर शेर बढ़िया....
taareef के लिये शुक्रिया अनु जी !
Deleteनज़्म के लिए इतनी पीड़ा ? बहुत खूबसूरत गजल ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी,
Deleteबहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
ReplyDeleteधन्यवाद सदा जी !
Deleteसुभानाल्लाह....दर्द में डूबी ये नज़्म बन ही गयी है शानदार और बेहतरीन.....मधुबाला जी की तस्वीर चार चाँद लगा रही है ।
ReplyDeleteDHANYVAAD IMRAAN JI!
ReplyDeleteवाह शालिनीजी ...दर्द से लबरेज़ यह नज़्म ....अंतस को छू गयी ......लाजवाब !!!!!
ReplyDeleteधन्यवाद सरस जी !
ReplyDeleteमुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
ReplyDeleteफिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने - वाह , क्या बात है !
धन्यवाद रश्मि प्रभा जी !
Deleteकल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
हलचल में शामिल करने के लिए धन्यवाद, यशवंत जी !
Deleteवाह!
ReplyDeleteधन्यवाद अनुपमा जी!
Deleteekdam lazabab.....
ReplyDeleteधन्यवाद मृदुला जी!
Deleteवाह...बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteधन्यवाद पल्लवी जी!
Deleteवाह...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी!
Deleteलाजवाब...बहुत ही सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद निधि जी!
Deleteमुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
ReplyDeleteफिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने
....बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति....
धन्यवाद कैलाश जी!
Deleteयूँ तो हर शेर लाजवाब है, मगर इन शेर पर खास तौर से दाद स्वीकार करें.
ReplyDeleteठोकर खा के गिरने से बचे हैं फिर से हम
संग राह में कुछ और बिछाओ कि कोई नज़्म बने
मुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
फिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने
धन्यवाद अरुण जी!
Deleteबुझा चुके हर चराग, स्याह और करने को रात
ReplyDeleteटिमटिमाते तारों को भी बुझाओ कि कोई नज़्म बने
KHUBSURAT JAHIN NAZM.
बहुत बहुत शुक्रिया रमाकान्त जी!
Deletebahut sundar abhivyakti shalini ji .badhai .navsamvatsar ki hardik shubhkamnayen .
ReplyDeleteYE HAI MISSION LONDON OLYMPIC.LIKE THIS PAGE AND SHOW YOUR PASSION FOR INDIAN HOCKEY
कोई नासूर बनाओ कि कोई नज़्म बनाए... क्या बात है .. नज़्म बन गयी शालिनी जी और बेहतरीन बनी है...
ReplyDeleteधन्यवाद निशांत जी!
Deleteतुम्हारे जश्न में रौनक अभी है कम ज़रा
ReplyDeleteमेरे हालात पे ठहाके लगाओ कि कोई नज़्म बने
बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल
उम्दा पंक्तियाँ ..
हार्दिक आभार मदन जी!
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