Monday, 12 March 2012

कि कोई नज़्म बने .....





मुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले 
फिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म  बने 


टीस उठती है है अब कम कि भर गए घाव कई 
कुरेद के नासूर बनाओ उन्हें, कि कोई नज़्म  बने 


आ गया हौंसला बहुत अब दर्द सहने का 
दर्द की इन्तहां बढाओ,  कि कोई नज़्म  बने 


खारा पानी भी आँखों का सूख चला है अब 
खून के आँसू रुलाओ  कि कोई नज़्म  बने 


हर बददुआ खो रही  है असर कि फ़ना करने को हमें
 अब तरकीब  नई लाओ  कि कोई नज़्म  बने 


ठोकर खा के गिरने से बचे हैं फिर से हम 
संग राह में कुछ और बिछाओ  कि कोई नज़्म  बने 


बुझा चुके हर चराग, स्याह और करने को रात 
टिमटिमाते तारों को भी बुझाओ  कि कोई नज़्म  बने 


तुम्हारे जश्न में रौनक अभी है कम ज़रा 
मेरे हालात पे ठहाके लगाओ  कि कोई नज़्म  बने 



35 comments:

  1. बहुत खूब.............

    बुझा चुके हर चराग, स्याह और करने को रात
    टिमटिमाते तारों को भी बुझाओ कि कोई नज़्म बने

    लाजवाब गज़ल..हर शेर बढ़िया....

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    1. taareef के लिये शुक्रिया अनु जी !

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  2. नज़्म के लिए इतनी पीड़ा ? बहुत खूबसूरत गजल ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी,

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  3. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  4. सुभानाल्लाह....दर्द में डूबी ये नज़्म बन ही गयी है शानदार और बेहतरीन.....मधुबाला जी की तस्वीर चार चाँद लगा रही है ।

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  5. वाह शालिनीजी ...दर्द से लबरेज़ यह नज़्म ....अंतस को छू गयी ......लाजवाब !!!!!

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  6. धन्यवाद सरस जी !

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  7. मुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
    फिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने - वाह , क्या बात है !

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    1. धन्यवाद रश्मि प्रभा जी !

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  8. कल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. हलचल में शामिल करने के लिए धन्यवाद, यशवंत जी !

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  9. Replies
    1. धन्यवाद अनुपमा जी!

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  10. Replies
    1. धन्यवाद मृदुला जी!

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  11. वाह...बहुत खूब लिखा है आपने

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    1. धन्यवाद पल्लवी जी!

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  12. वाह...बहुत सुन्दर...

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  13. लाजवाब...बहुत ही सुन्दर .

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद निधि जी!

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  14. मुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
    फिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने

    ....बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति....

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    1. धन्यवाद कैलाश जी!

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  15. यूँ तो हर शेर लाजवाब है, मगर इन शेर पर खास तौर से दाद स्वीकार करें.
    ठोकर खा के गिरने से बचे हैं फिर से हम
    संग राह में कुछ और बिछाओ कि कोई नज़्म बने
    मुद्दतें हुईं दिल से कोई 'आह' निकले
    फिर कोई ज़ख्म नया दो, कि कोई नज़्म बने

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  16. बुझा चुके हर चराग, स्याह और करने को रात
    टिमटिमाते तारों को भी बुझाओ कि कोई नज़्म बने
    KHUBSURAT JAHIN NAZM.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया रमाकान्त जी!

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  17. कोई नासूर बनाओ कि कोई नज़्म बनाए... क्या बात है .. नज़्म बन गयी शालिनी जी और बेहतरीन बनी है...

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    1. धन्यवाद निशांत जी!

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  18. तुम्हारे जश्न में रौनक अभी है कम ज़रा
    मेरे हालात पे ठहाके लगाओ कि कोई नज़्म बने
    बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल
    उम्दा पंक्तियाँ ..

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    Replies
    1. हार्दिक आभार मदन जी!

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आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.

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