खो गई कविता
जी हाँ ,
फिर से
अभी कुछ देर पहले ही
खाना बनाते हुए
मन में बन रही थी
एक कविता
आटा गूंधते हुए
मन में गुंध रहे थे
कुछ अनगढ़े भाव
फिर कुछ और शब्द डाल
यत्न से कुछ और
......और गूँधा
आटे के साथ साथ
आकार लेने लगी
........ कविता
धीरे-धीरे
रोटियों की सौंधी महक
और मन में महकती कविता
कागज़ पे उतरने को आतुर
सोचा
कुछ देर और
बस थोडा काम और
और फिर
कुछ और थोड़ा काम
....बस
रात गहराती गई ....
सब के सोने के बाद
कागज़ कलम उठा
शुरू किया जो लिखना
हाथ से फिसल-फिसल
भागने लगे
इधर- उधर सब भाव
शब्दों को पकड़ने की कोशिश
कभी भावों को समेटने की
पर दोनों ही
देते रहे धोखा
बार- बार
और इस बार भी
नींद की गफलत में
फिर से खो गई
एक और कविता
................. ऐसे ही
न जाने कितनी ही बार
कभी सिरहाने के नीचे
तो कभी काम के ढेर के पीछे
रख के भुला दी जाती
तो कभी
खो जाती कविता ............
जी हाँ ,
फिर से
अभी कुछ देर पहले ही
खाना बनाते हुए
मन में बन रही थी
एक कविता
आटा गूंधते हुए
मन में गुंध रहे थे
कुछ अनगढ़े भाव
फिर कुछ और शब्द डाल
यत्न से कुछ और
......और गूँधा
आटे के साथ साथ
आकार लेने लगी
........ कविता
धीरे-धीरे
रोटियों की सौंधी महक
और मन में महकती कविता
कागज़ पे उतरने को आतुर
सोचा
कुछ देर और
बस थोडा काम और
और फिर
कुछ और थोड़ा काम
....बस
रात गहराती गई ....
सब के सोने के बाद
कागज़ कलम उठा
शुरू किया जो लिखना
हाथ से फिसल-फिसल
भागने लगे
इधर- उधर सब भाव
शब्दों को पकड़ने की कोशिश
कभी भावों को समेटने की
पर दोनों ही
देते रहे धोखा
बार- बार
और इस बार भी
नींद की गफलत में
फिर से खो गई
एक और कविता
................. ऐसे ही
न जाने कितनी ही बार
कभी सिरहाने के नीचे
तो कभी काम के ढेर के पीछे
रख के भुला दी जाती
तो कभी
खो जाती कविता ............
सटीक लिखा है ....ऐसे ही न जाने कितनी कवितायें खो जाती हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी !
Deleteसटीक लिखा है ... ऐसे ही न जाने कितनी कवितायें खो जाती हैं ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletepareshaan mat hoyein
ReplyDeletevichaar aate hein
nepathy mein chale jaate hein
khote nahee ,phir laut kar aayenge
jab aisee hee awasthaa aayegee
धन्यवाद राजेन्द्र जी, बस यूँही, थोड़ा परेशां हो गई थी अपनी लापरवाही पे ...
Deleteहर दिन खोती है मेरी कविता इसी उहापोह में .... रखकर भूल जाती हूँ या वे खो जाते हैं .
ReplyDeleteधन्यवाद रश्मि जी, अब में आश्वस्त हूँ कि मेरे ही साथ ऐसा नहीं होता..
Deleteसच्ची कहा..............
ReplyDeleteकिचेन में एक कागज़ रखा करिये...हमारी शेल्फ के पेपर के नीचे अब भी कई अधलिखी रचनाएँ हैं
:-)
जाने ना दीजिए किसी ख़याल को यूँ....
धन्यवाद अनु जी, सुझाव अच्छा है !
Deletekoi baat nahi shalini ji gabraye nahi aksar aisa hota rehta hai sabhi ke sath
ReplyDelete.........rasoi me kaam katre aksar aisa hota h
Excellent post Shalini ji
ReplyDeletei am read complitly.....and after reading i agree with u
gud wishes to u holi festival
from Sanjay bhaskar
धन्यवाद संजय जी!
Deleteअक्सर ऐसी कई जीवित कवितायें भी खो जाती हैं ... रोज़मर्रा का जीवन निभाते ...
ReplyDeleteगहरे अर्थ लिए रचना ..
बहुत खुबसूरत लगी ये पोस्ट ।
ReplyDeleteपर पुरुष क्यों नहीं समझ पाएंगे क्योंकि उन्होंने आता नहीं गूंथा :-))
धन्यवाद इमरान जी ..... आपकी टिपण्णी पर कहना चाहूंगी( क्षमा सहित) - जाके पांव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई ...
Deletesunder ....kavita kho gai .kahan khoi ,dekhiye aur praroop mein samne aa gai ..../ aksar aisa hi hota hai ......jane kitni baar .....kitni rachnayein ....yun hi ...kho jati hain .....!
ReplyDeleteहम तो खुद आपके अनुभव को कई बार जी चुके हैं शालिनी मैम!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
हम तो खुद आपके अनुभव को कई बार जी चुके हैं शालिनी मैम!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
Bahut SUnder Rachna..........Behtreen Bhavo ke saath behtreen prastuti
ReplyDeleteyahan to apna haal bayan ho gaya ,isliye kahte hai nari se behtar nari ko kaun samjh sakta hai ,is bishya par mere bhi bahut belan chale ,aapki rachna par mahila divas ki badhai banti hi hai ,holi parv ki badhai
ReplyDeleteजैसे हर मन की बात तह दर तह आपने सामने सजा दी ....सच में ना जाने कितनी कवितायेँ इस प्रकार गृहस्थी की भेंट चढ़ जाती हैं ....
ReplyDeleteदेते रहे धोखा
ReplyDeleteबार- बार
और इस बार भी
नींद की गफलत में
फिर से खो गई
एक और कविता
behatareen abhivyakti pr apko hardik badhai shalini ji
अच्छी प्रस्तुति है... और हाँ ! एक रचनात्मक व्यक्ति की सोच स्त्री और पुरुष के दायरे से ऊपर होना चाहिए | पुरुषत्व तो स्त्री के भावों की समझ पर ही निर्भर है | और सम्पूर्ण वर्ग को नासमझ कहना उचित नहीं है, खासकर आप जैसे एक रचनात्मक व्यक्ति के लिए |
ReplyDeleteधन्यवाद निशांत जी ..... पुरुष मित्रों की भावनाओं को आहात करने के लिए क्षमा माँगते हुए इस टिपण्णी को हटा रही हूँ
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