वो , जो ज़िन्दगी में, एक पल को भी न आया
बेवफा दिल ने भी उसे ,एक पल को भी न भुलाया
अक्स उसका ही बसा रहा क्यों, इन आँखों में हर घड़ी
चेहरा जिसका नज़र के सामने कभी हुआ न नुमाया
सूखे पत्तों की सरसराहट या कि गुनगुनाई हवा
उस अनसुनी आवाज़ को सुनाने का गुमाँ सा हुआ
उसका ही था वजूद, चारों तरफ था उसका ही सरमाया
हम ही थे भरम में या कि तुमने था हमें भरमाया
इक तपिश थी, कशिश थी, कुछ शोखी , कुछ अठखेलियाँ
हर बार कुछ जुदा सा लगा, जब-जब मुखातिब वो आया
हवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां
अब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.
बेवफा दिल ने भी उसे ,एक पल को भी न भुलाया
अक्स उसका ही बसा रहा क्यों, इन आँखों में हर घड़ी
चेहरा जिसका नज़र के सामने कभी हुआ न नुमाया
सूखे पत्तों की सरसराहट या कि गुनगुनाई हवा
उस अनसुनी आवाज़ को सुनाने का गुमाँ सा हुआ
उसका ही था वजूद, चारों तरफ था उसका ही सरमाया
हम ही थे भरम में या कि तुमने था हमें भरमाया
इक तपिश थी, कशिश थी, कुछ शोखी , कुछ अठखेलियाँ
हर बार कुछ जुदा सा लगा, जब-जब मुखातिब वो आया
हवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां
अब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.
शालिनी जी बहुत ही अच्छा लिखा है.....काश खुदा हमें भी ऐसा हुनर बख्शता तो हम भी कलम के सिपाही बन जाते ....आपकी सृजनात्मकता अद्भुत है.....
ReplyDeleteधन्यवाद जितेंद्र
Delete"इक तपिश थी, कशिश थी, कुछ शोखी , कुछ अठखेलियाँ
ReplyDeleteहर बार कुछ जुदा सा लगा, जब-जब मुखातिब वो आया "
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं मैम!
सादर
धन्यवाद यशवंत जी!
Deleteहवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां
ReplyDeleteअब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.
waah
धन्यवाद रश्मि जी!
Deleteहवाओं पे लिख के , मौसम के हाथ भेजी थी चिट्ठियां
ReplyDeleteअब तक है इंतज़ार, जवाब अब आया कि तब आया.
वाह!!!
बहुत सुन्दर शालिनी ..
wah ....bahut sunder ....
ReplyDeletedoori mit gayi hai ..jaise ....
sunder ehsaas...
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं..
ReplyDeletedhanyvaad sanjay ji!
Deleteवाह....बहुत खुबसूरत ।
ReplyDeletewah ....subhanalla kya khoob likha hai .....badhai .
ReplyDeletehan kabhi mere bhi blog pr aiye swagat hai.
wah ,bahut sunder ....
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