Tuesday 7 February 2012


न शेर ओ शायरी की अक्ल , 
न गीत ओ गज़ल की समझ .
न ही कविता रचने का शऊर,
न नज़्म गढ़ पाने का माद्दा .
बस कुछ शब्द टूटे फूटे से,
कुछ भाव अनबूझे-अनकहे से.
जुबां पर लाने की जुर्रत में ,
ख्वाब कितने ही फिसल छूटे.
कहीं कल्पना की अधूरी - सी उड़ान  
कहीं असलियत का अधसिला जामा
किसे पकडें, किसे छोड़े की कशमकश में 
हर बार अधूरी रह जाती मेरी.... 'अनुभूति'   

7 comments:

  1. कविता रचना मुझे कभी न आता कभी कभी रच जाती कविता........

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  2. आपको अभिव्यक्ति की बाकायदा समझ है:-)
    बहुत सुन्दर..

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  3. अनुभूति अधूरी नहीं होती , अनकहा शेष रहता है

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  4. धन्यवाद पश्यन्ती जी, विद्या जी, रश्मि जी ....हार्दिक आभार !

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  5. अपने अज्ञान को स्वीकार कर लेने से ही हम पूर्णतया की और बढ़ जाते हैं.....बहुत सुन्दर है पोस्ट|

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    1. जी हाँ इमरान जी , अपने अज्ञान को स्वीकार करने में मुझे कोई झिझक नहीं है ....... तारीफ के लिए शुक्रिया!

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  6. जी अपने तो बहुत सुन्दर लिखा है ...
    अच्छा लिखती है आप और लिखती रहिये ...

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